बिहार का संदेश: लोक को तंत्र निर्देषित नहीं कर सकता!
-इक़बाल हिंदुस्तानी
0बीजेपी ने दिल्ली से सबक़ लिया होता तो आज मुंह की न खाती।
कंेद्र में सरकार बनाने के बाद से पीएम नरेंद्र मोदी जी बीजेपी और संघ परिवार को कई गलतफहमियां और खुशफहमियां हो गयी थीं जो बिहार चुनाव से दूर हो जानी चाहिये। इससे पहले देश की जनता ने बीजेपी को अपनी नाराज़गी और मोहभंग होने का हल्का सा संकेत अब से दस माह पहले दिल्ली विधानसभा के चुनाव में ही दे दिया था लेकिन बीजेपी ने उससे सबक न लेकर जनता के बंपर बहुमत से चुनी गयी केजरीवाल की आप सरकार को तरह तरह से संविधान और कानूनी दांवपेंच के जाल में फंसाकर एक तरह से जनमत का अपमान किया और सर्वशक्तिमान जनता का सेवक होने का बार बार दावा करने के बावजूद अपने व्यवहार और अहंकार से दिल्ली की जनता को यह अहसास कराना चाहा जैसे उसने बीजेपी को हराकर पाप किया हो जिसकी सज़ा उसको आम आदमी पार्टी को काम करने न देकर अप्रत्यक्ष रूप से दी जायेगी।
इसके बाद बिहार में जब चुनाव शुरू हुआ तो बीजेपी यह भूल गयी कि सेंटर में उसकी सरकार बने डेढ़ साल से अधिक हो चुका है और अब जनता रेडियो पर मन की बात और टीवी चैनलों पर हिंदुत्व की बात नहीं ठोस काम चाहती है। संघ परिवार की दिल्ली में शर्मनाक हार के बाद भी यह गलतफहमी दूर नहीं हुयी कि सिर्फ नारों और वादों पर सरकार बना लेने से वे हर राज्य के विधानसभा चुनाव में पीएम मोदी जी के लच्छेदार भाषणों और बीजेपी प्रेसीडेंट अमित शाह के मीडिया मैनेजमैंट से जीतती नहीं रहेगी। आरएसएस को यह खुशफहमी हो गयी थी कि अगर वह केंद्र सरकार की कमान बीजेपी के हाथों में दिला सकते हैं तो बिहार जैसे राज्य मेें बीजेपी को जिताना कौन सा बड़ा काम है? पीएम मोदी भी दिल्ली विधानसभा की हार को अपवाद मानकर आज तक इसी भ्रम में थे कि वे अपने बोलने के खास स्टाइल जातीय समीकरण करोड़ों के पैकेज से बिहार का चुनाव जीत लेंगे।
बीजेपी को यह गलतफहमी शायद इसलिये भी हुयी क्योंकि महाराष्ट्र और हरियाणा में वे इसी बल पर सरकार बनाने में कामयाब हो गये थे। एक सच्चाई वे भूल गये कि उन दोनों राज्यों में उनके सामने कोई मज़बूत विकल्प नहीं था जबकि दिल्ली और बिहार में केजरीवाल और नीतीश कुमार विकास और सुशासन के मामले में मोदी से भी बाज़ी मार गये। संघ परिवार यह सोच रहा था कि केंद्र सरकार के बल पर तंत्र की शक्ति से वे बिहार के लोक को अपने हिसाब से नियंत्रित और मतदान के लिये संचालित कर लेंगे लेकिन बिहार के वोटर ने अपनी राजनीतिक परिपक्वता और भारतीय सभ्यता संस्कृति की समरसता व सहिष्णुता की रक्षा करते हुए बीजेपी को आईना दिखा दिया है। बीजेपी यह भूल गयी कि जिस लालू यादव को वे जंगलराज का प्रतीक बता रही थी उसी लालू पर पिछड़े और खासतौर पर यादव और मुस्लिम जान छिड़कते रहे हैं ।
संघ प्रमुख भागवत आरक्षण की समीक्षा और पीएम मोदी बिहार के लोकप्रिय सीएम नीतीश के डीएनए पर उंगली उठाते हुए यह याद नहीं रख पाये कि यही रण्नीति वे कांग्रेस के खिलाफ गुजरात चुनाव में प्रयोग कर राज्य की अस्मिता का सवाल उठाकर जीत हासिल कर चुके हैं। यूपी के दादरी में जिस तरह से बीफ़ मर्डर के लिये संघ परिवार पर इसकी वैचारिक पृष्ठभूमि बनाने के लिये उंगली उठी, कन्नड़ लेखक कालबुर्गी नरेंद्र डाभोलकर और गोविंद पानसारे की हत्या का आरोप संघ की हिंदूवादी कट्टर सोच वालों पर लगा और इसके विरोध में जिस तरह से साहित्यकारों फिल्मकारों इतिहासकारों और अन्य क्षेत्रों के बुध्दिजीवियों ने अपने पुरस्कार लौटाये विरोध दर्ज किया सरकारी पदों को लात मारी युवा दिलों की धड़कन अभिनेता शारूख़ खान पर मुस्लिम होने की वजह से भाजपा नेताओं ने उनसे असहमति पर कीचड़ उछाला और उसपर बीजेपी संघ और उसकी सरकार की प्रतिक्रिया तानाशाही मनमानी और अभिव्यक्ति की आज़ादी व उदारता को कुचलने वाली थी जिससे बिहार की जनता में एक के बाद एक गलत संदेश गया।
इसके साथ ही मोदी सरकार की आक्रामकता पद की गरिमा गंवाकर निचले स्तर का पीएम का वाकयुध््द घटिया आरोप प्रत्यारोप हिंदुत्व की मनमानी व्याख्या निरंकुशता तानाशाही अहंकार दाल की महंगाई भ्र्र्र्रष्टाचार कालाधन वापस न आना किसानों की आत्महत्या और विदेशी निवेश विगव वर्ष से भी कम आना अब मोदी मैजिक ख़त्म होने का ऐलान बिहार चुनाव के नतीजों ने दो टूक कर दिया है। गोरक्षा के लिये कानून हाथ में लेने को उकसाने, बीजेपी की हार पर पाकिस्तान में पटाखे फूटेंगे और लालू व नीतीश हिंदुओं का आरक्षण छीनकर मुसलमानों को दे देंगे जैसे साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के टोटकों से अब हिंदू जनता भी बीजेपी के झांसे में नहीं आने वाली है।
संघ परिवार को यह बात समझ लेनी चाहिये कि बीजेपी को देश की जनता ने हिंदूराज के एजेंडे पर नहीं विकास और सुशासन के लिये जिताया था। उनको यह भी याद रखना चाहिये कि मोदी लहर के बाद भी उनके गठबंधन को आम चुनाव में मात्र 31 प्रतिशत मत मिले थे जो स्कूल के बच्चो के थर्ड डिवीज़न में पास होने को भी दो प्रतिशत कम हैं। बीजेपी माने या न माने विकास का कोई ठोस काम वे अब तक कर नहीं पाये हैं। जो वादे और दावे उन्होंने कांग्रेस की सरकार उखाड़ने के लिये किये थे उनमें से अधिकांश पूरे नहीं हो पाये हैं। वे जनता को धोखा देकर तंत्र के हिसाब से उसको नहीं चला सकते। बिहार में नीतीश कुमार ने अपने दो कार्यकाल में विकास और अति पिछड़ों व अति दलितों के लिये ठोस काम किया है माफियाओं को जेल भेज दिया है । वो वहां की जनता के दिल में उतर चुके हैं।
महिलाओं और खासतौर पर गरीब छात्राओं के लिये साइकिल किताबें और पोशाक का जो अभियान नीतीश सरकार ने चलाया था उसको जनता ने हाथो हाथ लिया है। इतना ही नहीं बीजेपी जिस तरह सामंतवादी तरीकों से राजस्थान और भ्रष्ट ढंग से मध््यप्रदेश की सरकार चला रही है उससे यह संदेश गया है कि भाजपा भी कांग्रेस से कुछ बेहतर नहीं है बल्कि वे कांग्रेस की तरह सत्ता में अपना हिस्सा बांटने की बारी की प्रतीक्षा कर रहे थे। केंद्रीय संस्कृृृृृति मंत्री और परिवहन मंत्री ने इस बात को बेशर्मी से स्वीकार भी किया है कि यह सब पहले भी हुआ है तो अब इतना हंगामा और पुरस्कार वापस क्यों किये जा रहे हैं। सत्ता के नशे में इनको यह भी नहीं पता रहा कि जनता ने पहले की सेक्युलर सरकारों की भूल न दोहराने के लिये ही तो बीजेपी और मोदी को उनकी उम्मीद से ज्यादा वोट देकर एक मज़बूत सरकार बनाई थी।
अगर अभी भी बीजेपी मोदी और संघ ने अपनी हिंदूवादी, साम्प्रदायिक और अलगाववादी आक्रामक व जनविरोधी नीति छोड़कर विकास सुशासन और निचले स्तर के भ्रष्टाचार को खत्म करने पर काम शुरू नहीं किया तो आने वाले यूपी बंगाल और पंजाब चुनाव के बाद 2019 के आम चुनाव में भी केवल साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण भाषणों और दावों से उनको फिर से जीत मिलने वाली नहीं है।
0 हज़ारों ऐब ढूंढते हैं हम दूसरों में इस तरह ,
अपने किरदारों में हम लोग फ़रिशते हों जैसे।।
Friday, 20 November 2015
बिहार की हार
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