मोदी ने चुनाव का एजेंडा
विकास तो बना ही दिया है!
-इक़बाल हिंदुस्तानी
0 क्षेत्रीय दल सुशासन के बल पर ही इस लहर से बच सकते हैं?
भाजपा के पीएम पद के प्रत्याशी और गुजरात के
मुख्यमंत्री नरेंद्र भाई मोदी से कोई सहमत हो या असहमत, प्रेम करे या घृणा और समर्थन करे या विरोध लेकिन उनके 2014 के चुनाव को विकास के एजेंडे पर लाकर सत्ताधरी
यूपीए गठबंधन के लिये बड़ी चुनौती बन जाने को अब कांग्रेस और सपा के नेता भी
स्वीकार करने को मजबूर हो रहे हैं। यह बहस का विषय हो सकता है कि गुजरात पहले से
ही और राज्यों के मुकाबले विकसित था या मोदी के शासनकाल में ही उसने विकसित राज्य
का दर्जा हासिल किया है लेकिन इस सच से मोदी के विरोधी भी इन्कार नहीं कर सकते कि
आज मोदी को भाजपा ने अगर पीएम पद का प्रत्याशी प्रोजेक्ट किया है तो इसके पीछे
उनकी कट्टर हिंदूवादी छवि कम उनका ‘विकासपुरूष’ वाला चेहरा ज्यादा उजागर किया जा रहा है।
इतना ही नहीं मोदी भाजपा का परंपरागत एजेंडा
राम मंदिर, समान आचार संहिता और कश्मीर
की धारा 370 हटाने का मुद्दा कहीं भी
नहीं उठा रहे हैं। मोदी, भाजपा और संघ इस नतीजे पर
शायद पहंुच चुके हैं कि भाजपा को अगर सत्ता में आना है तो हिंदूवादी एजेंडा छोड़ा
भले ही ना जाये लेकिन उस पर ज़ोर देने से शांतिपसंद और सेकुलर सोच का हिंदू ही उनके
समर्थन में आने को तैयार नहीं होता। इसलिये बहुत सोच समझकर यह रण्नीति बनाई गयी है
कि चुनाव भ्रष्टाचार के खिलाफ और ‘‘सबका साथ सबका विकास‘‘ मुद्दे पर लड़ा जाये तो ज्यादा मत और अधिक समर्थन जुटाया जा सकता है।
यही वजह है कि 1991 की तरह ना तो आज देश में
मंदिर मस्जिद का मुद्दा गर्म किया जा रहा है, ना ही रामरथ यात्रा निकाली जा रही है और ना ही हिंदू राष्ट्र के नाम
पर दंगे भड़काने वाला उन्मादी माहौल बनाया जा रहा है।
इसके साथ ही भाजपा के वरिष्ठ नेता यह जानते
हुए भी कि मुस्लिम उनको अभी खुलकर वोट देने को तैयार नहीं होगा यह प्रयास करते नज़र
आ रहे हैं कि कम से कम मुसलमान भाजपा प्रत्याशियों को हराने के एक सूत्री एजेंडे
पर ‘‘लोटानमक’’ एक ना करें। इसी रण्नीति के
तहत भाजपा मुसलमानों के साथ भी न्याय करने और उससे अगर कोई गल्ती हुयी हो तो माफी
तक मांगने को तैयार होने की बात कह रही है। सेकुलर माने जाने वाले नेता चाहे जितने
दावे करंे लेकिन मैं यह बात मानने को तैयार नहीं हूं कि गुजरात में मोदी केवल 2002 के दंगों और साम्प्रदायिकता की वजह से लगातार जीत
रहे हैं। आज के दौर में मतदान में भी गड़बड़ी इस सीमा तक नहीं की जा सकती कि मीडिया
व विपक्ष को पता ही ना चले। सच तो यह है कि देश के 81 करोड़ मतदाताओं में से 47 प्रतिशत युवा है जिनको हिंदू राष्ट्र और राममंदिर से ज्यादा अपने
रोज़गार और क्षेत्र के विकास की है।
देश की जनता भ्र्रष्टाचार से भी तंग आ चुकी है
वह हर कीमत पर इससे छुटकारा चाहती है, यही वजह है कि केजरीवाल की जुम्मा जुम्मा आठ दिन की आम आदमी पार्टी
से उसे भाजपा से ज्यादा उम्मीद नज़र आई तो उसने आप को सर आंखों पर लेने में देर
नहीं लगाई। आज भी केजरीवाल की नीयत पर उसे शक नहीं है भले ही वह उसकी काम करने की
शैली और कुछ नीतियों से सहमत नहीं हो। सही मायने में मोदी के गुजरात जाकर केजरीवाल
ने जो 16 सवाल उठाये हैं वह सकारत्मक और
विकास की नीति पर बहस की शुरूआत मानी जा सकती है।
गुजरात मंे
पिछले 10 सालों में लघु उद्योगों का बंद
होना, बेरोज़गारी बढ़ना, शिक्षित युवाओं को 5300 रू0 मासिक ठेके पर नौकरी देना, सरकारी स्कूलों व अस्पतालों की हालत दयनीय होना, सरकारी कामों में भ्र्र्रष्टाचार बढ़ना, बड़े उद्योगपतियों को किसानों की ज़मीन छीनकर कौड़ियों के भाव देना, केजी बेसिन की गैस के दाम पर
मोदी का चुप्पी साधना, अंबानी परिवार के दामाद सौरभ पटेल को राज्य का मंत्री बनाना, चुनावी हवाई यात्रा का हिसाब ना देना , गुजरात के 800 किसानों का आत्महत्या करना, कच्छ के सिख किसानों की ज़मीन ना छीनने का मोदी का पंजाब में ऐलान करना
और फिर भी जबरन भूमि अधिगृहण को सही ठहराने के लिये गुजरात सरकार का सुप्रीम कोर्ट
जाना क्या बताता है, नर्मदा का बांध का सारा पानी
किसानों को ना देकर उद्योगपतियों को देना, चार लाख किसानों को कई साल से आवेदन के बाद भी बिजली का कनेक्शन ना
मिलना और मोदी के साफ सुथरी सरकार देने के दावे की पोल खोलते हुए उनके मंत्रीमंडल
में खाद घोटाले में निचली अदालत से तीन साल की सज़ा पा चुके ज़मानत पर चल रहे
बाबूभाई बुखारिया और 400 करोड़ के मछली घोटाले में आरोपी
पुरूषोत्तम सोलंकी जैसे दागी मंत्रियों का मौजूद होना भ्र्रष्टाचार और विकास को
लेकर एक सार्थक और सकारात्मक बहस का आग़ाज़ ही माना जा सकता है।
अनुमान यह लगाया जाता है कि
गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी को दोस्तों और दुश्मनों के बारे में जवाहर लाल नेहरू
और पटेल दोनों नेताओं का स्वभाव मिला है। मोदी अपने परिवार से अपने को खुद ही काट चुके है। यह भी बड़ी वजह है कि मोदी
विरोधियों के हाथ उनकी पारिवारिक कमज़ोरियां नहीं लग पाती है। 2002 के दंगों के दाग़ के अलावा मोदी का दामन
भ्रष्टाचार को लेकर लगभग बेदाग माना जाता रहा है। दरअसल मोदी भाजपा की कमज़ोरी और
ताकत दोनों ही बन चुके है। इस समय हैसियत में वह पार्टी में सबसे प्रभावशाली नेता
माने जाते हैं। उन्हें चुनौती देने वाला कोई ’विकासपुरूष’ नहीं है। ऐसा माना जा रहा है कि अगर भाजपा 200 तक लोकसभा सीटें जीत जाती है तो चुनाव के बाद
जयललिता, चन्द्रबाबू नायडू, नवीन पटनायक, ममता बनर्जी और मायावती को राजग के साथ आने में
ज्यादा परेशानी नहीं होगी।
लोजपा के पासवान और इंडियन जस्टिस पार्टी के
उदितराज जैसे दलित नेता पहले ही भाजपा के साथ आ चुके हैं। इन सबके आने के अपने
अपने क्षेत्रीय समीकरण और विशेष राजनीतिक कारण है। कोई भाजपा या मोदी प्रेम के
कारण नहीं आयेगा। इन सबके साथ एक कारण सामान्य है कि कांग्रेस के बजाये भाजपा के
साथ काम करना इनको सहज और लाभ का सौदा लगता है। इस बार जनता का मूड कांग्रेस के
साथ ही क्षेत्रीय और धर्मनिर्पेक्ष दलों से भी उखड़ा नज़र आ रहा है, जहां तक केजरीवाल की आप का सवाल है वह अभी राजनीति में बच्चा ही है।
मोदी अगर विकास के नारे पर जीतकर सरकार बनाने में सफल हो जाते हैं तो उनकी मजबूरी
होगी कि सबका साथ सबका विकास हर हाल में करें।
0कैसे आसमां में सुराख़ हो नहीं सकता,
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों।।
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