Thursday, 30 October 2025

बहनजी का विश्वास खत्म

*बहनजी का नहीं रहा विश्वास,* 
*मुस्लिम नहीं आयेगा उनके पास!*
0 बसपा सुप्रीमो बहन मायावती ने कहा है कि मुसलमानों ने सपा के साथ बार बार तनमनधन से जाकर देख लिया लेकिन वे बीजेपी को नहीं हरा सके। उन्होंने मुसलमानों को बसपा से जोड़ने के लिये भाईचारा संगठन में यूपी के 18 मंडलों में एक दलित व एक मुस्लिम को संयोजक बनाने की कवायद शुरू की है। विपक्ष का आरोप है कि कुछ दिन पहले माया ने लखनऊ में योगी सरकार के सहयोेग से बीजेपी के दबाव में एक बड़ी विशाल रैली भी की थी, जिसके द्वारा यह संदेश देने की नाकाम कोशिश की गयी कि बसपा ने पूरी तरह से अपना जनाधार नहीं खोया है। इस रैली के ज़रिये मुसलमानों को गुमराह करके बसपा के साथ आने का यह कहकर लालच दिया गया था कि बसपा भाजपा की बी टीम नहीं है। 
  *-इक़बाल हिंदुस्तानी*
     बसपा की मुखिया मायावती यह भूल रही हैं कि मुसलमान उस दौर में उनकी पार्टी के साथ फिर से जुड़ सकता है जिस दौर में उनके अपने दलित समाज ने उनका साथ छोड़ दिया है। यह बात उनकी किसी हद तक सही है कि अगर मुसलमान दलित समाज के साथ जुड़ जाये तो कुछ अन्य हिंदू कमज़ोर पिछड़े और शोषित वर्ग के प्रत्याशी उतारकर बसपा सपा कांग्रेस के मुकाबले भाजपा के खिलाफ चुनाव जीत सकती है और माया इसी समीकरण के बल पर एक बार पूरे बहुमत से जीतकर यूपी में सरकार बना भी चुकी है। लेकिन उनको यह पता होना चाहिये कि केवल वोटों के समीकरण से चुनाव नहीं जीते जाते बल्कि इसके लिये जनता का पार्टी व उसके नेता में विश्वास होना पहली शर्त है। 2007 में माया को दलितों व मुसलमानों के साथ ही कुछ पिछड़ों व अगड़ों ने वोट देकर सरकार बनवाई थी। लेकिन उस दौर में माया ने सत्ता के बल पर सबका विकास करके सबका विश्वास जीतने की बजाये केवल दलितों को खुश करने को एकतरफा और पक्षपातपूर्ण तरीके से काम किया और करप्शन के रिकाॅर्ड तोड़कर वह बेहद कीमती मौका गंवा दिया। इसके बाद न केवल उनकी सत्ता चुनाव में छिन गयी बल्कि उनके खिलाफ आय से अधिक सम्पत्ति की जांच भी शुरू हो गयी। यही वजह है कि बहनजी जेल जाने के डर से बीजेपी के इशारे पर ऐसे काम बयान और फैसले करती हैं जिससे उनके अपने वोटबैंक दलित पिछड़े और मुसलमान उनसे धीरे धीरे किनारा करते गये। उनका विश्वास पूरी तरह खत्म होता जा रहा है।
       उनको जनता का बड़ा हिस्सा बीजेपी की बी टीम मानता है। बहनजी खुद भी बीजेपी से अधिक सपा और कांग्रेस के खिलाफ नज़र आती हैं। राष्ट्रीय स्तर पर बसपा का वोट शेयर 1991 में सबसे अधिक 8.38 प्रतिशत था जबकि सांसद सबसे अधिक 2009 में 21 जीते थे तो 2024 में मत प्रतिशत देश में 2.06 यूपी में 9.39 परसेंट हो गया और सांसद शून्य हैं। यूपी की बात करें तो 2007 में उसका वोट प्रतिशत सबसे अधिक 30.43 था तो विधायक सबसे अधिक 207 जीते थे लेकिन 2022 के चुनाव में वोट 12.88 प्रतिशत तो विधायक मात्र एक रह गया है। माया यह भूल रही है कि उनसे अच्छे लच्छेदार और दिल को छू लेने वाले बयान एआईएमआईएम के ओवैसी देते हैं लेकिन उनको भी जब से मुसलमानों ने बीजेपी की बी टीम माना है, तब से बांस से छूने को भी तैयार नहीं हैं। बसपा सुप्रीमो मायावती चाहे दावे कुछ भी करें लेकिन यह बात अब साफ हो गयी है कि वे मोदी सरकार के दबाव में अपने खिलाफ आय से अधिक सम्पत्ति मामले में जांच को दबाये रखने के लिये भाजपा के इशारे पर बहुजन समाज के हितों के खिलाफ राजनीति कर रही हैं। यही वजह है कि आम चुनाव शुरू होने के दौरान उनको जब इंडिया गठबंधन ने भावी पीएम का चेहरा बनाकर पेश करने के लिये विपक्षी गठबंधन में आने का न्यौता दिया तो वे इतना घबरा गयी कि बिना इस प्रस्ताव पर चर्चा किये ही उल्टा यह आरोप लगा दिया कि कुछ दल बसपा के बारे में विपक्षी गठबंधन में जाने की अफवाहें फैला रहे हैं।
       इससे पहले उन्होंने अपने भतीजे आकाश को चुनाव की कमान सौंप दी थी। जब आकाश जोरदार चुनाव प्रचार करके जल्दी ही मीडिया में चर्चित होने लगे तो उनके खिलाफ कुछ भाषण में अपशब्द कहने की भाजपा सरकार ने रिपोर्ट दर्ज कर दी। इसके बाद मायावती ने उनको उनके पद से हटाकर चुनाव प्रचार से भी रोक दिया। ऐसे ही मायावती ने जितने उम्मीदवार खड़े किये उनमें से जीता तो एक भी नहीं लेकिन चर्चा है कि गैर दलितों से चुनाव चंदे के रूप में मोटी रकम लेकर टिकट इस हिसाब से दिये गये जिससे अकेले यूपी में अकबरपुर अलीगढ़ अमरोहा बांसगांव भदोही बिजनौर देवरिया डुमरियागंज फरूखाबाद फतेहपुर सीकरी हरदोई मिर्जापुरा मिश्रिख फूलपुर शाहजहांपुर और उन्नाव आदि 16 सीट पर बसपा के प्रयाशियों ने इतने मुस्लिम दलित वोट काट लिये कि इंडिया गठबंधन का उम्मीदवार उससे कम वोटों के अंतर से भाजपा केंडीडेट से हार गया। लेकिन यहां सवाल बसपा सुप्रीमो की नीयत का है। वे लगातार ऐसे बयान देती रही हंै जिससे भाजपा को लाभ और सेकुलर दलों को नुकसान हुआ है। 2019 में सपा से गठबंधन करके जब उन्होंने यूपी में संसदीय चुनाव लड़ा था तो उनको शून्य से 10 सीट पर पहुंचने का भारी एकतरफा लाभ हुआ था। जबकि दलित वोट सपा को ना जाने से सपा की सीट पहले की तरह 5 ही रह गयी थीं। फिर भी पूरी बेशर्मी से बहनजी ने झूठ बोलते हुए गठबंधन से बसपा को लाभ ना होने का आरोप लगा कर भाजपा के दबाव में अलग होने का एलान कर दिया था।
       यह अजीब बात है कि आज जब उनकी पोल खुल चुकी है कि वे भाजपा की बी टीम वैसे ही नहीं कही जाती बल्कि इसके कई प्रमाण और उदाहरण लोगों के सामने आते जा रहे हैं। हम तो चाहते हैं कि मायावती क़सम खा लंे कि चाहे कोई मुसलमान कितनी ही बड़ी रकम चंदे मंे दे वे उसको किसी कीमत पर टिकट नहीं देंगी क्योंकि इससे मुसलमानों पर उनका एहसान होगा नुकसान नहीं। सच तो यह है कि करोड़ों रूपये देकर जो बसपा का टिकट लाता है। उसके पास अपवाद छोड़ दें तो नंबर दो यानी हराम का पैसा ही अधिक होता है। इससे मुसलमानों का आर्थिक नुकसान तो होता ही है। साथ साथ वोट काटकर बसपा भाजपा को हर बार कई सीट जिताकर राजनीतिक नुकसान भी करती है। मुसलमानों का एक वर्ग जो साम्प्रदायिक है और बसपा प्रत्याशी को अपने ही धर्म का देखकर केवल इस चक्कर में वोट कर देता है कि इससे संसद में मुसलमानों की संख्या कुछ बढ़ सकती है। जबकि सेकुलर दल और उनके हिंदू नेता आज के दौर में मुसलमानों के अधिकार की लड़ाई बसपा के मुस्लिम से बेहतर लड़ रहे हैं। बहनजी आरपीआई के प्रकाश अंबेडकर और असदुद्दीन ओवैसी जैसे डबल गेम खेलने वाले चालाक धूर्त सभी नेता यह समझ लें कि ये पब्लिक है सब जानती है।
0 एक आदमी में होते हैं दस बीस आदमी,
जिसको भी देखना हो कई बार देखना।।
 *नोट- लेखक नवभारत टाइम्स डाॅटकाम के ब्लाॅगर और पब्लिक आॅब्ज़र्वर अख़बार के चीफ एडिटर हैं।*

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