*बिहार का विवादित एसआईआर,*
*केंचुआ नहीं मान रहा आधार?*
0 बिहार का एसआईआर पूरा हो गया। अंतिम मतदाता सूची भी आ गयी लेकिन इस पर विवाद खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। चुनाव विश्लेषक और समाजसेवी योगेंद्र यादव का कहना है कि बिहार की कुल व्यस्क आबादी के अनुसार राज्य में 8 करोड़ 22 लाख वोटर होने चाहिये। लेकिन एसआईआर की लास्ट वोटर लिस्ट में 80 लाख वोटर कम हैं। ऐसे ही नये वोटर बनने के लिये आयोग के अनुसार अंतिम तिथि तक 16 लाख 93 हज़ार लोगों ने आवेदन किया था लेकिन नये मतदाता 21 लाख 53 हज़ार बना दिये गये। सवाल यह है कि 4 लाख 60 हज़ार नये मतदाता कहां से आ गये? एक करोड़ 30 लाख से अधिक वोटर के पते सन्दिग्ध हैं। 3 लाख 66 हज़ार नाम जो काटे गये उनका कारण भी नहीं बताया जा रहा है।
*-इक़बाल हिंदुस्तानी*
बिहार में 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में महागठबंधन और एनडीए एलाइंस के बीच मात्र 11150 वोट का अंतर था। इसकी वजह औवेसी की पार्टी एआईएमआईएम को माना गया था। जिसने 4 सीट जीती और 11 सीट पर महागठबंधन के वोट काटकर 15 सीट के मामूली बहुमत से जेडीयू भाजपा की सरकार बनवाने में अहम भूमिका अदा की थी। विपक्ष का आरोप था कि इस बार महागठबंधन के जीतने के पूरे पूरे आसार देखकर केंचुआ मोदी सरकार के इशारे पर एसआईआर के बहाने विपक्ष के वोट काट रहा है और भाजपा जेडीयू के फर्जी वोट बढ़ा रहा है। एसआईआर जिस जल्दबाज़ी और गैर पारदर्शी तरीके से किया गया है। उससे भी विपक्ष के आरोपों को बल मिल रहा है। बताया जाता है कि जिन लाखों लोगों के वोट केंचुआ ने काटे हैं उनकी विस्तृत जानकारी बार बार मांगने के बाद भी वह अपनी वेबसाइट पर सार्वजनिक नहीं कर रहा है कि उनके वोट किस वजह से काटे गये हैं? एसआईआर के दौरान भाजपा ने यह भी दावा किया था कि राज्य में बड़े पैमाने पर विदेशी घुसपैठ हुयी है। लेकिन अब यह नहीं बताया जा रहा है कि कितने घुसपैठियों के वोट काटे गये? यह भी नहीं बताया जा रहा है कि केंचुआ को कैसे पता लगा कि अमुख मतदाता विदेशी है? क्योंकि यह जांचने का काम तो गृह मंत्रालय का है।
यह बात एसआईआर पर चर्चा के दौरान खुद सुप्रीम कोर्ट कह चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने कंेचुआ को कई बार यह भी सलाह निर्देश और आदेश दिया कि वह मतदाता की पहचान के लिये आधार को 12 वां दस्तावेज़ स्वीकार करे, लेकिन केंचुआ अभी भी मक्कारी करते हुए कह रहा है कि वह सुप्रीम कोर्ट के आधार को लेकर दिये गये आदेश का सम्मान करता है लेकिन पूरे देश में वह आधार तभी स्वीकार करेगा जब पहले से दी गयी पहचान पत्रों की 11 की लिस्ट में से कोई एक कागज़ आधार के साथ दिया जायेगा। क्या इसका मतलब यह नहीं है कि आधार स्वीकार नहीं किया जा रहा है क्योंकि जब उसके साथ पहले से बताये गये 11 में से एक दस्तावेज़ देना ज़रूरी है तो आधार का क्या मतलब रह गया? एसआईआर के बाद जो वोटर लिस्ट सामने आई है उसमें दो लाख से अधिक मतदाताओं के पते के सामने कुछ भी नहीं लिखा है। ऐसे ही 24 लाख घर ऐसे हैं जिनमें 10 से अधिक लोग रहते हैं, क्या यह शक की बात नहीं है। रिपोर्टर कलक्टिव की रिपोर्ट के अनुसार 14 लाख 35 हज़ार वोट अभी भी डुप्लिकेट हैं। इसमें वोटर का नंबर तो अलग अलग है लेकिन उनके माता पिता का नाम एक ही है। उनके अनुसार एक ही पते पर 505 मतदाता अभी भी मौजूद होना एसआईआर की पूरी कवायद को शक के दायरे मंे लाता है। ऐसे ही एक अन्य जगह पर 442 मतदाता एक साथ रहते पाये गये हैं। इनके धर्म और जाति भी अलग अलग है। एक करोड़ 32 लाख मतदाताओं के पते संदिग्ध हैं। अगर केंचुआ के कर्मचारियों ने घर घर जाकर एक एक मतदाता का सत्यापन किया होता तो इतनी बड़ी कमियां गल्तियां और खामियां नहीं होतीं।
चुनाव आयोग ने अपनी प्रेस वार्ता में एक साथ पांच पांच रिपोर्टर के सवाल लिये जिससे असुविधाजनक सवालों को वह जवाब देने से टाल गया। न्यूज़ लांड्री की रिपोर्ट के अनुसार 2 लाख 92 मतदाताओं के घर का पता जीरो दर्ज किया गया है। इस मतदाता सूची में पहले की तरह लिंग उम्र और अन्य आधार पर दी जाने वाली आठ अलग अलग जानकारी भी केंचुआ देने से पीछे हट गया है। विधानसभा सीट वार कितने वोट काटे गये और कितने नये जोड़े गये यह भी केंचुआ नहीं बता रहा है क्योंकि उसको डर है कि इससे स्थानी लोग उसकी गड़बड़ी और भी जल्दी पकड़ लेंगे। डिजिटली रीडेबिल वोटर लिस्ट के लिये भी विपक्ष को सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगानी पड़ी है तो केंचुआ आखिर छिपाना क्या चाहता है? वह लेवल प्लेयिंग फील्ड उपलब्ध कराकर अपने माथे पर लगा सरकार का कठपुतली होने पर दाग हटाने को चिंतित क्यों नहीं है? चुनाव की तिथि घोषित होने के अंतिम समय तक निष्पक्षता किनारे कर नीतीश सरकार एक करोड़ महिलाओं के खाते में 10 दस हज़ार रूपये एक तरह से रिश्वत के तौर पर भेजती रही लेकिन केंचुआ का मुंह बंद ही रहा। विपक्ष का यह भी आरोप है कि आयोग ने नये मतदाता बनाने के नाम पर एक एक घर एक एक फ्लैट और एक एक अपार्टमेंट में 100 से 200 तक मतदाता बिना कड़ी जांच पड़ताल के कैसे संदिग्ध रूप से बना दिये? विपक्ष का कहना है कि अब बिहार के बाद बंगाल और फिर पूरे देश में स्पेशल इंटैन्सिव रिवीज़न के नाम पर चुनाव आयोग सत्ताधारी दल के इशारे पर मनमाने तरीके से विपक्ष के परंपरागत समर्थक मतदाता खासतौर पर दलित आदिवासी अल्पसंख्यक और गरीब कमज़ोर वर्ग के वोट एक सुनियोजित षड्यंत्र, अभियान और योजना के तहत काटने पर तुला है।
विपक्ष का आरोप है कि जो विपक्ष के असली वोटर काटे जाते हैं उनके बदले भाजपा के उतने ही फर्जी मतदाता जोड़ दिये जाते हैं जिससे हर सीट पर 20 से 30 हज़ार वोट का अंतर आ जाता है। रहा कुछ फर्जी राशन आधार और वोटर कार्ड का सवाल तो जो 11 डाक्यूमेंट की लिस्ट आयोग ने मतदाता जांच के लिये जारी की है, उनमें भी कुछ नकली और फर्जी हो ही सकते हैं जैसा कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुका है कि दुनिया का ऐसा कोई दस्तावेज़ नहीं है जिसको कुछ लोग फर्जी ना बना लेते हों लेकिन इसकी जांच कर व्यक्तिगत स्तर पर ऐसे लोगों की पहचान कर उनके कागजों को अमान्य किया जा सकता है लेकिन इस बहाने सबके आधार वोटर और राशन कार्ड को ठुकराना गलत है। सच तो यह है कि चुनाव आयोग की विश्वसनीयता सरकार ने उसी दिन खत्म कर दी थी जिस दिन चुनाव आयुक्त चुनने वाली कमैटी से चीफ जस्टिस को बाहर कर विपक्ष के नेता व पीएम के साथ उनके एक और मंत्री को शामिल करने का कानून बना था। यही वजह थी इस दौरान एक चुनाव आयुक्त गोयल ने इस्तीफा भी दे दिया था। वीडियो फुटेज ना दिखाना विपक्ष को डिजिटल वोटर लिस्ट ना देना और एक ही पते पर सैंकड़ो लोगों का वोट बन जाना कुछ ऐसे चर्चित विवादित और शक पैदा करने वाले अनेक मामले हैं जिनसे केंचुआ की साख रसातल में जा रही है, लेकिन उसे और सरकार को कोई मतलब नहीं है। केंचुआ पर एक शेर याद आ रहा है-उसके होंटों की तरफ ना देख वो क्या कहता है, उसके क़दमों की तरफ देख वो किधर जाता है।
*नोट-लेखक नवभारत टाइम्स डाॅट काॅम के ब्लाॅगर और पब्लिक आॅब्ज़र्वर के चीफ़ एडिटर हैं।*