*स्व. श्री बाबूसिंह चैहान साहब की मिशनरी पत्रकारिता बेमिसाल!*
0दैनिक बिजनौर टाइम्स रोज़ाना ख़बर जदीद और चिंगारी दैनिक के संस्थापक प्रकाशक और प्रथम संपादक व वरिष्ठ जनवादी लेखक स्व. श्री बाबूसिंह चैहान साहब ने बिजनौर जि़ले एवं पश्चिमी यूपी के आसपास के क्षेत्रों को मात्र ये अख़बार ही नहीं दिये थे। बल्कि इन समाचार पत्रों के ज़रिये मिशनरी पत्रकारिता का एक पौधा भी लगाया था। जो आज बड़ा वृक्ष बनकर लहलहा रहा है। लेकिन अफ़सोस की बात यह है कि जिन उसूलों मक़सद और मंजि़ल के लिये बाबूजी ने कांटों भरा सफ़र तय किया। आज समाज सरकार और देश के मुख्यधारा के मीडिया ने उन जनहित के मुश्किल रास्तों को छोड़कर अवसरवाद पूंजीवाद और झूठ व नफ़रत का शाॅर्टकट से लाभ का रास्ता अपना लिया है।
-इक़बाल हिंदुस्तानी
आज से 23 साल पहले यानी इस दुनिया को अलविदा कहने से पहले
चैहान साहब अकसर कहा करते थे कि आज दुनिया पंूजीवाद के रास्ते पर चल रही है। जिससे हमारा देश भारत भी अछूता नहीं रह सकता। वे यह भी कहा करते थे कि हम अपने अख़बारों को मिशनरी पत्रकारिता के तौर पर चला रहे हैं और आगे भी तमाम चुनौतियां और नुकसान उठाकर चलाते रहेंगे। लेकिन जो बड़े कारोबारी घराने अपने अख़बार पत्रिकायें या टीवी चैनल व्यवसायिक लाभ के लिये चला रहे हैं। वे कम से कम न्यूनतम सामाजिक नैतिक और निष्पक्षता के मापदंड तो अपनायें। उनका कहना था कि कारोबार करना बुरी बात नहीं है। ना ही कारोबार से लाभ कमाने की इच्छा रखना गलत है। लेकिन ख़बरें और लेख सच व तथ्यों पर ही आधारित होने चाहियें। बाबूजी का दो टूक कहना था कि आप अपने मुनाफे या सत्ता में बैठे आकाओं व अफसरों से बेजा लाभ लेने को झूठ नफरत और असामाजिक विषय वस्तु नहीं परोस सकते। उनका मशवरा था कि आप बेशक मीडिया को बिज़नेस के तौर अपनायें लेकिन उसको पूरी ईमानदारी सच्चाई और निष्पक्षता से करें। वे अकसर पत्रकारों के कार्यक्रमों जनसभाओं और गष्ठियों में कहा करते थे कि आज सबसे बड़ी विडंबना यह है कि जिन पूंजीपतियों धनवानों और काॅरपोरेट ग्रुप्स को पत्रकारिता की एबीसीडी नहीं पता, वे बड़े बड़े पत्रकारों संवाददाताओं और लेखकों को वेतन पर रखकर यह बता रहे हैं कि वे ख़बर और लेख कैसे लिखें? किसके पक्ष और किसके खिलाफ लिखें? यहां तक कि उनको झूठ और नफरत परोसने में भी कोई बुराई नज़र नहीं आती अगर उनको इसका लाभ मिल रहा होता है। हालांकि यह वह दौर था जब चैहान साहब शुरूआती दौर में ही पहचान रहे थे कि हमारे देश में जब 1991 में एल पी जी यानी लिबरल प्राइवेट और ग्लोबल नीतियां लागू कर पूंजीवाद के लिये सरकारें देश के दरवाजे़े ही नहीं बल्कि खिड़की और रोशनदान तक पूरी शिद्दत से खोलने में लगीं थीं। बाबूजी तभी उस ख़तरे को भांपकर आगाह कर रहे थे कि यह रास्ता विनाश का है। उनका कहना था कि अगर मीडिया पूंजी का गुलाम हो जायेगा। सरकार उस पर पूंजीपतियों पर नकेल डालकर अपना एजेंडा थोपने लगेगी तो फिर मिशनरी पत्रकारिता करना लोहे का चना चबाने जैसा हो जायेगा। जो सब नहीं कर पायेंगे। धीरे धीेरे लघु और मीडियम क्लास अखबार बंद होने लगेंगे। उनके लिये दोहरा संकट खड़ा हो जायेगा। एक तो वे बड़े मीडिया हाउस के पत्र पत्रिकाओं और रंगीन टीवी चैनलों के मुकाबले लंबे समय तक टिक नहीं पायेंगे। दूसरे सरकार की निर्भरता जब उनका प्रसार कम होते जाने से उनपर घटने लगेगी तो आगे चलकर बड़े बड़े काॅरपोरेट घरानों का मेन स्ट्रीम मीडिया पर कब्ज़ा हो जायेगा। जो देश के आम आदमी ही नहीं बल्कि लोकतंत्र के लिये भी एक बड़ा ख़तरा बन सकता है। आज बाबूजी की वो आशंका सच होती नज़र आने लगी है। विपरीत हालात और आर्थिक तंगी के बावजूद मिशनरी पत्रकारिता का साहसिक रास्ता न छोड़ने वाले गिने चुने अख़बार और चैनलों में बि.टा. ग्रुप को सबसे आगे रखने में श्री चंद्रमणि रघुवंशी और श्री सूर्यमणि रघुवंशी आज भी ‘‘गुरूकुल रीत सदा चली आई प्राण जाई पर वचन न जाई’’ को निभा रहे हैं। जो वचन उन दोनों ने अपने पिताश्री को उनके जीते जी दिया था। जनहित की जो पत्रकारिता चैहान साहब अपने विषम समय में भी कर गये वो आज के पत्रकारों के लिये मशाल का काम कर रही है। बिजनौर टाइम्स और चिंगारी के ज़रिये उन्होंने जनपद बिजनौर को आवाज़ प्रदान की। उनके ललित निबंध ‘दर्पण झूठ बोलता है’, हों या उनकी चर्चित ख़बर ‘भूखा मानव क्या करेगा?’ उनके व्यक्तित्व का आईना रहे हैं। हालांकि उनके जीते जी भी और आज भी बिजनौर टाइम्स ग्रुप पर लेखनी से समझौता करने के बार दबाव आये लेकिन इस ग्रुप ने कभी अपने उसूलों से समझौता नहीं किया। चैहान साहब की कलम ने हमेशा बेबाक लिखा और सच लिखा। उनकी इसी साफगोई और निडरता से ही उनको कई राष्ट्रीय और इंटरनेशनल पुरस्कार व सम्मान भी मिले। उनको एक बार नहीं अनेक बार विदेश भ्रमण पर सरकारी प्रतिनिधि मंडल मंे जाने का सम्मान भी हासिल हुआ। विदेश दौरों से लौटकर उन्होंने अपने यात्रा संस्मरण भी कई माह तक किश्तों में लिखे। जब जनपद वासियों की प्यास इन संस्मरणों से भी नहीं भरी तो उन्होंने जनता की अपील पर सीध्ेा संवाद कर नगर नगर और गांव गांव अपनी यात्रा का आंखो देखा हाल सीध्ेा बयान किया। सबसे बड़ी बात यह थी कि जहां उनके प्रतिनिधिमंडल में शामिल अन्य बड़े बड़े नामचीन पत्रकारों में अधिकांश विदेश जाकर घूमते फिरते और मौज मस्ती करते थे। वहीं चैहान साहब विदेशांे की लाइब्रेरी म्यूजि़यम और वहां के लोगों से संवाद करने में अपना अधिकांश समय बिताते थे। इसके साथ ही न केवल इन सब बातों पर समय लगाते थे बल्कि जब सब साथी रात में चैन की नींद सो जाते थे। बाबूजी रात रात भर जागकर दिन भर की बातों को कलमबंद करते थे। उन दिनों कम्पयूटर स्मार्टफोन और इंटरनेट का दौर तो था नहीं। इसलिये सारे दिन का हाल अपने हाथ से कलम से ही डायरी मेें नोट करना होता था। कमाल और हैरत की बात यह थी कि चैहान साहब हर समय रिपोर्टिंग और कलम काॅपी का इस्तेमाल नहीं करते थे। लेकिन फिर भी 24 घंटे की एक एक बात अपनी तेज़ याददाश्त के बल पर हू ब हू शब्दों में बयान कर देते थे। हमेें याद है मंदिर मस्जिद आंदोलन के दौरान जब 1990 के दशक में आज की तरह चंद अख़बारों मेें झूठी साम्प्रदायिक और भड़काउू रिपोर्टिंग की गई थी तो चैहान साहब चट्टान की तरह उनके रास्ते में विरोध जताने को खड़े हो गये थे। उन्होंने अपनी सोच के निष्पक्ष और निडर सेकुलर पत्रकारों के साथ मिलकर ऐसी घटिया फेक और पेड न्यूज की न केवल निंदा की बल्कि उनको घसीटकर पै्रस कौंसिल में ले जाने वालों का समर्थन किया। बाद में जांच होने पर दोषी पाये गये झूठे अख़बारों की प्रैस कौंसिल ने भी निंदा की और भविष्य में ऐसी भूल न दोहराने की चेतावनी दी। अंत में यही कहा जा सकता है कि चैहान साहब भले ही आज मौजूद नहीं हैं। लेकिन यह संतोष की बात है कि बिजनौर टाइम्स और चिंगारी के रूप में उनके विचारों की मशाल उनके सुपुत्र चांद और सूरज की तरह रोशन किये हुए हैं। अगर मिशनरी पत्रकारिता को जीवित रखना है और चैहान साहब को सच्ची श्रध््दांजलि अर्पित करनी है तो न केवल बिजनौर टाइम्स परिवार रघुवंशी बंधु इस ग्रुप से जुड़े पत्रकार बल्कि पूरे समाज को उन मूल्यों की रक्षा करनी होगी जिनके लिये पूरे जीवन बाबूजी निडरता और समर्पण से कड़ा संघर्ष करते रहे थे।
0 मैं यह नहीं कहता कि मेरा सर ना मिलेगा,
लेकिन मेरी आंखों में तुझे डर ना मिलेगा।।
*(लेखक नवभारतटाइम्सडाॅटकाॅम के ब्लाॅगर और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)*
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