Sunday, 17 May 2020

कोरोना पैकेज

पैकेज नहीं बॉन्ड हैप्रॉब्लम सप्लाई नहीं डिमांड है!

0कोरोना संकट से निबटने को पीएम मोदी ने जो 20 लाख करोड़ का पैकेज दिया है। उसका हर किसी ने ऐलान होते ही स्वागत किया था। लेकिन जब वित्तमंत्राी ने इसको चार दिन तक विस्तार से समझाया तो विपक्षी नेता राहुल गांध्ी पूर्व वित्तमंत्राी चिदंबरम और अन्य अर्थ विशेषज्ञों ने इसे एक तरह से बॉन्ड यानी कर्ज़ बताते हुए गरीबों को सीध्े नक़द मदद दिये जाने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया है। जिससे बाज़ार में डिमांड पैदा हो और रोज़गार के अवसर बढे़ं।    

          -इक़बाल हिंदुस्तानी

   पीएम मोदी ने लॉकडाउन का ऐलान करते हुए राष्ट्र के नाम अपने पहले संबोध्न में कहा था कि जान है जहान है। उनका मतलब यह था कि कोरोना से हम सबकी जान को ख़तरा है। लेकिन जैसे ही लॉकडाउन आगे बढ़ा उन्होंने अर्थव्यवस्था की नब्ज़ पहचानते हुए दूसरे संदेश कहा कि जान भी जहान भी। यानी हमें सेहत का ख़याल रखना है। साथ ही रोज़ी रोटी का भी। इसके बाद देश में कुछ आर्थिक गतिविध्यिों की छूट दी गयी। हालांकि आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई की पहले ही व्यवस्था कर दी गयी थी। लेकिन इससे काम नहीं चला तो 1लाख 70 हज़ार करोड़ का पहला आर्थिक पैकेज दिया गया।

हमारी 130 करोड़ की आबादी के सामने यह पैकेज बहुत छोटा लगा। इसके बाद पीएम मोदी ने हमारी जीडीपी के 10 प्रतिशत के बराबर यानी कुल 20 लाख करोड़ का आर्थिक पैकेज जब घोषित किया तो सबको लगा कि अब प्रवासी मज़दूरों बीपीएल परिवारों विध्वाओं वरिष्ठ नागरिकों किसानों बेरोज़गारों विकलांगों रोज़ कमाने रोज़ खाने वालों स्वरोज़गार वालों और मीडियम क्लास नागरिकों को नकद सहायता के रूप में बड़ी सहायत मिलेगी। लेकिन चूंकि हमारे पीएम न तो ऐसे मुद्दों पर अपनी कैबिनेट अर्थ विशेषज्ञों और राज्यों के मुख्यमंत्रियों से राय लेते हैं।

इसलिये जब इस विशाल पैकेज की डिटेल सामने आई तो लगा कि यह बाज़ार में डिमांड बढ़ाने की बजाये सप्लाई बढ़ाने की एक बिना सोची समझी योजना है। इससे कई माह पहले भी सरकार ने आरबीआई से 1लाख 46 हज़ार करोड़ रिजर्व पफंड से लेकर बड़ी पूंजीपतियों उद्योगपतियों और कॉरपोरेट सैक्टर को दिये थे। लेकिन उससे रोज़गार बढ़ना तो दूर और उल्टा लोगों की नौकरियां जाने का सिलसिला दिन ब दिन तेज़ होता गया। पीएम मोदी ने यह ऐतिहासिक पैकेज देते हुए एक लाइन यह भी जोड़ी थी कि पहले के राहत पैकेज और रिज़र्व बैंक द्वारा बढ़ाई गयी लिक्विडिटी को भी इस पैकेज में जोड़ लिया गया है।

दरअसल सारा खेल इसी एक लाइन में था। यह तो माना जा सकता है कि पहले का 1,70,000करोड़ इसमें जोड़ लिया जाये। लेकिन पीएम ने आरबीआई का पफ़रवरी व मार्च में बैंको को 8लाख 04 हज़ार करोड़ का लिक्विडिटी पफंड मंे इसमें जोड़ लिया। जो बैंको को विभिन्न क्षेत्रों को लोन उपलब्ध् कराने के लिये दिया गया है। इन दोनों को जोड़ें तो कुल 9 लाख 74हज़ार करोड़ तो इसका मतलब पहले ही दिया जा चुका है। आगे सरकार एमएसएमईज़ यानी माइक्रो स्मॉल और मिनी एन्टरप्राइजे़ज को बाकी बची रकम 10 लाख 26 हज़ार करोड़ में से 3 लाख 70,000 करोड़ का पैकेज लोन के रूप में अपनी आसान गारंटी और कुछ ब्याज सब्सिडी पर देगी।

    ऐसे ही बिजली सप्लाई करने वाली डिस्कॉम को 90,000 करोड़ एनबीएपफसीज़ एचएपफसीज़ और एमएपफ़आईज़ को75,000 करोड़ टीडीएस टीसीएस एवं ईपीएपफ में कंपनियों की तरपफ से उनका हिस्सा 56,750 करोड़ व रियल स्टेट को40,000 करोड़ हाउसिंग को 70,000 करोड़ किसानों को कर्ज़ के लिये 2 लाख 36000करोड़ और सबसे कम पफेरी लगाने वालों को5000 करोड़ व प्रवासी मज़दूरों को मात्रा3500 करोड़ के साथ बाकी बची रकम 79750करोड़ अन्य विभिन्न मदों में वित्तमंत्राी घोषित करेंगी।  

    अर्थव्यवस्था के जानकारों रघुराम राजन अमतर््य सेन और अभिजीत बनर्जी आदि व विपक्ष का कहना सही लगता है कि इस समय लगभग 12 करोड़ मज़दूर बेरोज़गार हो चुके हैं। उनके परिवार के औसत 5 सदस्य भी मानें तो ये संख्या 60 करोड़ यानी हमारी आबादी का कुल आध हिस्सा है। ऐसे ही स्वरोज़गार वाले किसान वकील मीडियाकर्मी और अन्य वर्गों के रोज़गार खो बैठे लोगों को जोड़ा जाये तो इनकी तादाद देश की आध्ी आबादी से भी अध्कि हो जायेगी। ऐसा नहीं है कि इनको लॉकडाउन खुलने के बाद भी काम नहीं मिलेगा। लेकिन अभी कई महीने या साल दो साल बाद तक भी इनको रोज़गार वंचित रहना पड़ सकता है।

    अर्थव्यवस्था के दो महत्वपूर्ण पहिये होते हैं। एक डिमांड दूसरा सप्लाई। आप बाज़ार में जाकर देखें तो आपको शायद ही किसी चीज़ की कमी मिले। देश में हर वस्तु के गोदाम भरे पड़े हैं। दुकानदार और होलसेल डीलर आगे और ऑर्डर देने को तैयार नहीं है। उसका कहना सही है कि बाज़ार में मांग नहीं है। मांग इसलिये नहीं है कि लोगों की जेब में पैसा नहीं है। उनके रोज़गार चले गये हैं। ऐसे में सरकार ने बैंको के ज़रिये और अध्कि रकम लोन उपलब्ध् कराकर उल्टा काम किया है। बैंको का एनपीए पहले ही बढ़ता जा रहा है। उद्योगपति मांग न होने से और अध्कि उत्पादन करने को और अध्कि कर्ज़ लेेन को तैयार नहीं है।

    बैंक और एनपीए बढ़ने के डर से नया लोन देने को तैयार नहीं है। इससे रोज़गार बढ़ने की बजाये और घटने की आशंका इसलिये भी बढ़ जाती है कि ध्ंध ना चलने से कंपनियां और अध्कि लोगों को नौकरी से निकालकर अपनी लागत व खर्च कम करना चाहेंगी। इसलिये सरकार से पैकेज में लोन के रूप में एक तरह से बॉन्ड नहीं डिमांड बढ़ाने को आध्ी से अध्कि परेशान किसान गरीब व बेरोज़गार जनता के बैंक खाते में सीध्े नक़द रकम जो 20 लाख करोड़ भाग 130 करोड़ कर दी जाती तो लगभग हर किसी को 15000 रू. दिये जाने की आशा थी। लेकिन प्रॉब्लम वही है कि जिनके हाथ में सत्ता है। वे खुद जानते नहीं और एक्सपर्ट व विपक्ष की सलाह मानते नहीं।                                         

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