Sunday, 3 September 2017

E filing not taxpayer

"इस सरकार को एक बहुत खराब बीमारी हो गयी है ओर वह बीमारी यह है कि यदि इनकी योजनाएं फेल हो जाये और झूठ पकड़ा जाने लगे तो कुछ तो भी आंकड़े पेश कर दो यानी खेत की बात पूछी जाए तो खलिहान की बाते बताना शुरू कर दो ऐसे तथ्य बताने लगो जिसके सिर पैर का कोई ठिकाना न हो और यह बीमारी संक्रामक बीमारी है यह तुरंत अपने भक्तों में ट्रांसफर हो जाती हैं

15 अगस्त को मोदी जी लाल किले से ही साफ झूठ बोल गए कि 3 लाख करोड़ का काला धन पकड़ा गया, नए करदाताओं की संख्या के बारे में तो इतना झूठ बोला हैं कि ठीक ठीक खुद को भी याद नही होगा कि किस मंत्री ने क्या बोला है, फिर आखिरी में आकर सुई 56 लाख पर अटकी है

वैसे सरकार ने अगस्त में ही पहली बार अर्धवार्षिक आर्थिक समीक्षा संसद में पेश की थी इसमें इकोनॉमी की हालत चिंताजनक बताई गई थी और इस रिपोर्ट में यह कहा गया कि “नए कर दाताओँ की संख्या में वृद्धि तथा विमुद्रीकरण के बाद 5.4 लाख नए करदाता उभर कर आए हैं’ ( लिंक कॉमेंट बॉक्स में है )
लेकिन इस दावे को भी झुठला कर वित्त मंत्रालय की तरफ से जारी प्रेस रिलीज में कहा गया कि पिछले साल के मुकाबले इस साल 56 लाख ज्यादा टैक्सपेयर्स ने ई-रिटर्न फाइल की इसका अर्थ सिर्फ ये है कि जैसा दि वायर के एम के वेणु ने कहा कि , 56 लाख नए करदाता नहीं बढ़े हैं बल्कि इतने लोग ई-फाइलिंग में शिफ्ट हुए हैं, जो कि पहले से चली आ रही है

यानी सिर्फ इ रिटर्न फाइल करने वालो की संख्या बढ़ी है पिछले साल की तुलना में इस वित्त वर्ष में 25 प्रतिशत करदाता बढ़े हैं.श्रीनिवासन जैन ने अपने अध्ययन से बताया कि अगर पुराने आंकड़े देखें तो 25 प्रतिशत की वृद्धि कोई बड़ी बात नहीं है. 2014-15 में 76 लाख करदाता जुड़े थे और 2016-17 में 80.7 लाख जुड़े. बस इतनी सी बात थी

वेसे इस आंकड़े की असली बारीकी भी जान लीजिये की वास्तव में करदाताओ की संख्या बढ़ने का क्या अर्थ है ओर इसका सरकारी खजाने पर कोई असर होता हैं या नही

केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड ने आंकड़ा जारी किया था कि देश की 129.5 करोड़ की आबादी में से मात्र 3.65 करोड़ यानी 2.8 प्रतिशत लोग इनकम टैक्स रिटर्न दाखिल करते हैं और रिटर्न दाखिल करनेवालों का 52.3 प्रतिशत हिस्सा ही टैक्स देता है. यानी सिर्फ आधा ही कुछ रकम जमा करता है ,

जेसे 2016 का आंकड़ा है कि इंदौर रीजन में 70 फीसदी करदाता केवल नाममात्र के लिए रिटर्न भरते हैं। टैक्स में उनका कोई योगदान नहीं है कुल 5.20 लाख करदाताइंदौर रीजन में पंजीकृत हैं।-2.5 लाख से कम आय सालाना बताने वाले करदाताकी 3.5 लाख संक्या सबसे अधिक है।2.5 लाख से 5.5 लाख की सालाना आय वाले करदाता- 1 लाख से कुछ ज्यादाहै और 5.50 से 9.50 लाख रुपए सालाना आय वाले करदाता मात्र 35 हजार है यह एक बानगी है पुरे देश की आयकर व्यवस्था की

अब एक और आंकड़ा देखिए , देश की आबादी का 1.33 प्रतिशत हिस्सा 23 प्रतिशत इनकम टैक्स दे रहा है, जबकि 0.15 प्रतिशत लोग 77 प्रतिशत इनकम टैक्स दे रहे हैं भारत में टैक्स व जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) का अनुपात 16.7 प्रतिशत है, जबकि अमेरिका में यह 25.4 प्रतिशत और जापान ने 30.3 प्रतिशत चल रहा है.मुश्किल यह भी है कि अपने यहां व्यक्ति ही नहीं, कंपनियां भी टैक्स देने में कोताही करती हैं. आकलन वर्ष 2014-15 में रिटर्न दाखिल करनेवाली 7.01 लाख कंपनियों में से 3.66 लाख कंपनियों ने कोई टैक्स नहीं दिया था. लेकिन उसे वसूलना तो दूर रहा बल्कि कार्पोरेट को टेक्स में और छूट दे दी गयी

यानी सीधी बात यह है की आयकर दाताओ की संख्या बढ़ने का अर्थ यह बिलकुल भी नही है कि इसी अनुपात से सरकार का खजाना भी बढ़ रहा है

अब एक ओर कमाल का फिगर आपको बताता हूँ जो इंडिया स्पेंड की एक रिपोर्ट में दिया गया है आयकर विभाग के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, एक शख्स पर 21, 870 करोड़ रुपये का टैक्स बकाया है. इसकी मात्रा देश को मिले कुल टैक्स की तुलना में 11% है..."
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@ Girish Malviya

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