Tuesday, 17 May 2016

मेडिकल में धांधली कैसे रुकेगी ?

शिक्षा और चिकित्सा धंधा नहीं है भाई!


आखि़रकार सुप्रीम कोर्ट को कहना पड़ा है कि शिक्षा और चिकित्सा की ज़िम्मेदारी से सरकार ने पल्ला झाड़ लिया है।  कोर्ट ने यह भी कहा कि ये दोनों क्षेत्र मुनाफ़े के लिये नहीं हो सकते। निजी क्षेत्र कैपिटेषन फीस के नाम पर धांधली कर रहा है। नियामक संस्था मेडिकल कौंसिल ऑफ इंडिया बजाये इसे काबू करने के खुद गले तक भ्रष्टाचार मंे डूबी है। कोर्ट को इसके काम की निगरानी के लिये भी तीन सदस्य कमैटी बनानी पड़ी है। 
   
हमारे देश में इस समय अजीब हालात हैं। एक तरफ सरकार को इस बात की तकलीफ है कि कोर्ट सरकार के कामों में दख़ल दे रहा है। दूसरी तरफ खुद सरकार की साख और ईमानदारी से काम करने की इच्छा शक्ति दूर दूर तक नदारद है। मध्य प्रदेश के निजी मेडिकल कालेजों की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट को कहना पड़ा है कि शिक्षा और चिकित्सा मुनाफे के लिये नहीं हैं। सरकार को चाहिये कि बच्चो की भर्ती के नियम और इनकी फीस तय करे। कोर्ट ने मेडिकल कौंसिल ऑफ इंडिया को भी आड़े हाथ लिया।  यह बात बिल्कुल सच है कि कैपिटेशन फीस से शिक्षा का स्तर लगातार गिर रहा है। हैरत की बात यह है कि आरक्षण को अयोग्यता की सबसे बड़ी वजह बताने वाले इस मामले में रहस्यमयी चुप्पी साध्ेा रहते हैं।
 
सबको पता है कि जब से शिक्षा और खासतौर पर उच्च शिक्षा का निजीकरण हुआ है। तब से न केवल शिक्षा का स्तर बुरी तरह गिरा है। बल्कि इस क्षेत्र में प्रवेश परीक्षा और मैनेजमैंट कोटे के नाम पर धांधली भी काफी बढ़ी है। इस पर भी सरकार ने आंखे बंद कर रखी हैं। सबको पता है कि आज शिक्षा और चिकित्सा इतनी महंगी हो चुकी हैं कि आम आदमी तो कर्ज लेकर भी अपने प्रतिभाशाली बच्चो को नहीं पढ़ा सकता। वजह अगर उसका बच्चा किसी वजह से पास नहीं हो सका तो वह कर्ज कैसे और कहां से उतारेगा? ऐसा भी हो सकता है कि किसानों की तरह उसके सामने भी आत्महत्या ही एक मात्र मुक्ति का रास्ता बचे?
    
आंकड़े बता रहे हैं कि हर साल साढ़े तीन करोड़ लोग महंगे इलाज की वजह से मीडियम क्लास से बीपीएल यानी गरीबी की रेखा के नीचे चले जाते हैं। यह अजीब बात है कि सरकार ने शिक्षा और चिकित्सा का निजीकरण कर अपनी ज़िम्मेदारी और बजट से ऐसा पीछा छुड़ा लिया है। मानो ये दोनों चीजे़े गैर ज़रूरी और बेकार की बात रही हो? आज निजी मेडिकल कॉलेजों ने मनमानी की सारी सीमायें पार कर रखी हैं। इनको काबू करने के लिये जो मेडिकल कौंसिल ऑफ इंडिया बनाई गयी थी। वो खुद भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी के आरोपों से घिरी है। हालत इतनी ख़राब है कि कौंसिल पर करोड़ों रूपये ऐंठकर ऐसे फर्जी मेडिकल कॉलेजों को मान्यता देने के आरोप हैं।
  
जिनमें न तो पर्याप्त भवन और टीचर हैं। और न ही बच्चो के लिये लैब व अन्य मूलभूत सुविधायें ही मौजूद हैं। जहां तक सरकार का सवाल है। उसको सबसे पहले अपने वोटबैंक का ख़याल रखना होता है। अब एक बात और आम हो गयी है। जो भी पार्टी विपक्ष में होती है। वह सत्ता में आने से पहले तो सरकार को खूब नैतिकता के पाठ पढ़ाती है। लेकिन जैसे ही वह खुद सत्ता मेें आती है। तो वही सब करने लगती है। जिसके लिये अभी कल तक वह सरकार को लताड़ रही थी। इसके बावजूद मजे़दार बात यह है कि वही अवसरवादी अनैतिक और ढोंगी पार्टी सरकार बनाते ही यह चाहती है कि उसके असंवैधनिक और तानाशाहीपूर्ण बेईमानी के कामों में कोर्ट दख़ल न दे। अरे वाह यह तो चोरी और सीनाजोरी है। सत्ता बदलती है लेकिन व्यवस्था वही रहती है।
 
सोचा तो था जाकर हम उससे फरियाद करेंगे
कमबख़्त वो भी उसका चाहने वाला निकला।

No comments:

Post a Comment