Wednesday, 27 August 2025

मोदी सरकार और भ्रष्टाचार

*सरकार पर लगे हैं आरोप लगातार,*
*लेकिन साबित कैसे होता भ्रष्टाचार?*
0 पीएम मोदी ने कहा है कि इतने वर्षों में हमारी सरकार पर भ्रष्टाचार का एक भी दाग नहीं लगा। यह बात किसी हद तक तो सही है क्योंकि जब मोदी सरकार पर करप्शन के आरोप लगे अगर वे उनकी निष्पक्ष जांच कराते तो सच सामने आता। हालांकि आज के दौर में निष्पक्ष तो सीबीआई या ईडी भी नहीं है जो केवल विपक्ष के नेताओं को चुनचुनकर भ्रष्टाचार के आरोप में निशाने पर लेती है। यही आरोपी विपक्षी नेता जब भाजपा में शामिल हो जाते हैं तो उनकी जांच ठंडे बस्ते में चली जाती है या फिर उनको क्लीन चिट दे दी जाती है। मोदी सरकार में भ्रष्टाचार को कई मामलों में या तो लीगलाइज़ कर दिया गया है या फिर ऐसे तौर तरीके निकाल लिये गये हैं जिनसे करने पर करप्शन करप्शन की परिभाषा से बाहर हो गया है।    
*-इक़बाल हिंदुस्तानी*
     इलेक्टोरल बांड की मिसाल ताज़ा है। यह करप्शन का जीता जागता नमूना था। इसको सुप्रीम कोर्ट ने अवैध मानकर निरस्त कर दिया था लेकिन इसके द्वारा जो लाखो करोड़ रूपया वसूला गया उसको राजनीतिक दलों से वापस नहीं कराया गया। आंकड़े बताते हैं कि इसका आधे से अधिक हिस्सा भाजपा के मिला था। विपक्ष का आरोप यह भी था कि जिन्होंने करोड़ों के इलेक्टोरल बांड खरीदकर भाजपा को दिये थे उनको चंदा लेकर ध्ंाधा दिया गया था। इतना ही नहीं मोटा चंदा इन बांड के द्वारा लेकर कई ठेके उन लोगों से निरंतर छापे रेड डालकर बीच में ही वापस ले लिये गये थे जो पहले से उनके पास चले आ रहे थे। इसके बाद ये ठेके नियम विरूध मोदी सरकार ने अपने चहेते उद्योगपतियों को दे दिये थे। ऐसे लोगों की एक लंबी सूची सार्वजनिक रूप से सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर चुनाव आयोग ने जारी की थी जिनमें 12000 करोड़ से अधिक रूपयों के इलेक्टोरल बांड देने वालों को सरकार ने नियम कानून ताक पर रखकर आॅब्लाइज किया था। विपक्ष के सरकार पर करप्शन के आरोप का दूसरा बड़ा उदाहरण पीएम केयर फंड है। इसमें सरकारी कंपनियों धनवान लोगों और सरकारी कर्मचारियों व अधिकारियों के वेतन सहित कंपनी सोशल रेस्पोंसिबिलिटी यानी सीएसआर का पैसा जमकर लिया गया लेकिन जब इसके बारे में सूचना के अधिकार में जानकारी मांगी गयी तो सरकार ने दावा किया कि यह तो निजी ट्रस्ट है इसपर आरटीआई कानून लागू नहीं होता।
     कमाल की बेशर्मी और मनमानी थी कि 30,000 करोड़ की विशाल धनराशि पीएम केयर, जो सरकारी पद है, के नाम पर आप जमा करते हैं और उसका हिसाब किताब मांगने पर उसको निजी बताकर छिपा लेते हैं। कोरोना महामारी के दौरान इस पीएम केयर से जो वंेटीलेटर खरीदे गये थे। उनकी गुणवत्ता और बहुत अधिक कीमत को लेकर भी सरकार पर करप्शन के आरोप लगे थे लेकिन उनकी आज तक कोई जांच नहीं हुयी। करप्शन का तीसरा चर्चित तरीका जो संस्थागत हो गया वह चुने हुए चंद कारपोरेट घरानों को बिना उनकी हैसियत काबिलियत और विशेषज्ञता जांचे सरकारी बैंकों से पहले भूरपूर कर्जा दे दो। उनको ही सरकारी सम्पत्ति औने पौने दाम पर बेच दो। उसके लिये भी उनका पिछला रिकाॅर्ड चैक किये बिना सरकारी बैंकों से लोन दिला दो। उनमें से कुछ बड़ी बड़ी रकम डकार कर विदेश भाग गये। कुछ ने अपना झूठा दिवाला निकालकर एनसीएलटी में अपना कुल कर्जा मात्र 5 से 10 प्रतिशत में लेदेकर सेटल करा लिया। उसके बाद ये ही उद्योगपति फिर से किसी नये प्रोजेक्ट में लग गये। लगता है इन चहेते धंधे वाले लोगों ने बांड के ज़रिये सत्ताधरी दल की सेवा कर दी। अडानी अंबानी और टाटा जैसे चंद पूंजीपतियों को काॅकस बनाकर सारा काम सारे ठेके और सारी योजनायें देते जाओ। उनसे कमीशन या रिश्वत लेने की ज़रूरत ही नहीं है।
        उनको जो करोड़ो अरबों का मुनाफा होगा उसमें से वे आपको चुनावी चंदा जितना आप चाहोगे वो देते रहेंगे। इसमें भ्रष्टाचार कहां हुआ जो पकड़ में आयेगा? एक दौर था जब भ्रष्टाचार होता था तो दिखता भी था। आरोप लगते थे तो ईमानदारी से जांच भी होती थी तो कई मामालों में साबित भी हो जाता था। उस ज़माने में नेता लोग ठेकेदारों अधिकारियों और उद्योगपतियों यहां तक कि छोटे छोटे व्यापारियों से भी चवन्नी अठन्नी से लेकर हज़ार पचास हज़ार लाख और करोड़ तक चंदा लेकर बदनाम होते थे क्योंकि जितना बड़ा चंदे का दायरा उतने मुंह उतनी ही पोल खुलने पर बातें आरोप चर्चा और शोर मचने का खतरा रहता था। अब करपशन को लीगलाइज़ और इंस्टीट्यूशनलाइज करने का मतलब ही यह है कि जो बेईमानी पहले किकबैक या एक्सटाॅर्शन कहलाती थी वह अब लीगली कंट्रीब्यूशन बना दी गयी। अब एक ही कारपोरेट से करोड़ों अरबों रूपया राजनीतिक चंदा चुपचाप ले लिया जाता है। यहां तक विधायक खरीदकर सराकरें भी गिरा दी जाती है। उसके बाद होने वाले चुनाव में वोटर लिस्ट में लाखों फर्जी वोटर जोड़कर उनको किसी एनजीओ के द्वारा जगह जगह मतदान को भेजने के लिये बड़ी रकम खर्च की जाती है। चुनाव लड़ने को एमपी के लिये 90 लाख और एमएलए के लिये 27 लाख की तय सीमा से कई गुना अधिक धन पार्टी मुख्यालयों से महानगर से लेकर गांवों तक पंचायत चुनाव में पार्टी का परचम लहराने को भेजा जा रहा है। 1200 करोड़ के बड़े बड़े राजनीतिक कार्यालय भवन बन रहे हैं। जिनमें फाइव स्टार होटल जैसी सुविधायें हैं।
        सवाल यह है कि अगर करप्शन नहीं हो रहा है तो इतना अरबों खरबों रूपया कहां से आ रहा है? खुद ईडी का कहना है कि उसने पिछले कुछ सालों में जो 400 केस पीएमएलए के तहत दर्ज किये उनमें से मात्र 10 में सज़ा दिला पाई है। पीएम का भाजपा सरकार पर भ्रष्टाचार का दाग न होने का आरोप कुछ ऐसा ही है जैसे कोई थाना इंचार्ज अपने इलाके में अपराध न होने का दावा तब करता है जबकि वो अपराध होने पर एफआईआर दर्ज ही नहीं करता। आर्टिफीशियल इंटेलिजैंस के नये एप ग्रोक से पूछा गया तो उसने ही ऐसे एक दर्जन से अधिक करप्शन के गंभीर आरोप गिना दिये जिनमें बिड़ला सहारा डायरी, व्यापम घोटाला, नीरव मोदी, मेहुल चैकसी, राफेल सौदा, आईएल एंड एफएस संकट, पीएमसी बैंक, डीएचएफएल धोखाधड़ी, कार्वी ब्रोकिंग, यस बैंक, पेगासस, अडानी हिंडनबर्ग, नीट लीक, यूजीसी नेट लीक, अडानी रिश्वतखोरी, फ्रीडम 251 जैसे करप्शन के बड़े मामले शामिल हैं जिनको विपक्ष ने समय समय पर उठाया है और विकीपीडिया पर भी मौजूद हैं, लेकिन सरकार ने इनपर कभी कान ही नहीं दिये जिससे ये बिना जांच के सही या गलत साबित कैसे हो सकते हैं? शायर ने कहा है- 
*हम कहंे बात दलीलों से तो रद्द होती है,*
*उनके होंठो की ख़ामोशी भी सनद होती है।* 
 नोट-लेखक नवभारत टाइम्स डाॅटकाॅम के ब्लाॅगर और पब्लिक आॅब्ज़र्वर के चीफ़ एडिटर हैं।

Thursday, 21 August 2025

राहुल का एजेंडा

समझ से बाहर है कें.चु.आ. का फ़ंडा, 
भारी पड़ रहा है राहुल का एजेंडा!
0 राहुल गांधी के चुनाव चोरी के आरोपों पर केंचुआ यानी केंद्रीय चुनाव आयोग ने पिछले दिनों प्रैसवार्ता की लेकिन मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने जो कुछ कहा वह बताने से अधिक छिपाने वाला था। उन्होंने कहा कि वोटिंग की वीडियो फुटेज देने से बहु बेटियों की प्राइवेसी खत्म होगी। पहले के सीईसी राजीव कुमार ने कहा था कि वीडियो देखने में 273 साल लगेंगे। इससे साफ पता लग रहा है कि वीडियो देने से केंचुआ की पोल खुल जायेगी। यही वजह है कि वे विपक्ष को मशीन रीडिंग वोटर लिस्ट भी नहीं दे रहे क्योंकि इससे उनकी धांधली पकड़ने में आसानी हो जायेगी। इतना ही नहीं आरोप लगने के बाद उल्टे केंचुआ ने बिहार में अपनी वेबसाइट पर डाली गयी डिजिटल वोटर लिस्ट हटाकर स्कैन की गयी सूची डाल दी है। केंचुआ राहुल गांधी के आरोपों की जांच कराने की बजाये उनको देश से माफी मांगने की धमकी दे रहा है।    
  *-इक़बाल हिंदुस्तानी*
      कंेचुआ यह भूल गया है कि उसके आयुक्त की नियुक्ति समिति में विपक्ष के नेता राहुल गांधी भी शामिल थे। एक तरह से राहुल उसके बाॅस हैं। चुनाव आयुक्त सेवक है। उनको जनता के टैक्स के पैसों से वेतन मिलता है। उसको पता होना चाहिये कि विपक्ष के नेता का पद संवैधानिक पद होता है। उसका दर्जा कैबिनेट मिनिस्टर के बराबर होता है। आज जब राहुल गांधी ने देश का एजेंडा तय करना शुरू कर दिया है तो केंचुआ सरकार और भाजपा बचाव में एक साथ खड़े हो गये हैं। क्या केंचुआ को पता नहीं है कि पिछले चुनाव में भाजपा को केवल 37 प्रतिशत मत मिले थे। उसमें भी राहुल गांधी के आरोपों की निष्पक्ष जांच के बाद ही पता चलेगा कि कितने असली थे और कितने फर्जी? अगर इनमें पूरे एनडीए यानी भाजपा के सहयोगियों के मत भी जोड़ लें तो भी यह 42 प्रतिशत होता है। इसका मतलब यह है कि आध्ेा से अधिक मतदाताओं का प्रतिनिधित्व विपक्ष करता है। इनमें से भी अगर गैर एनडीए और गैर इंडिया गठबंधन की 16 सीट निकाल दें तो भी विपक्ष के नेता राहुल गांधी बहुत बड़ी जनसंख्या का संसद में नेतृत्व करते हैं। लेकिन केंचुआ का रूख पूरे विपक्ष के साथ इतना बेरूखी शत्रुता और उपेक्षा का है जैसे उसे उनसे कोई लेना देना ही न हो। केंचुआ उनको मिलने तक का टाइम नहीं देता है। जब समय देता है तो उनके नेताओं की संख्या को लेकर सीमा लगाता है। उनके सवालों मांगों और आरोपों पर केंचुआ तमाम इधर उधर की बात करता है लेकिन मूल मुद्दे पर जवाब नहीं देता है। 
       केंचुआ आरोपों की जांच के लिये राहुल से शपथ पत्र की मांग कर रहा है लेकिन दो पूर्व चुनाव आयुक्त स्पश्ट कर चुके हैं कि एफिडेविट जांच से बचने का एक बहाना है क्योंकि नियमानुसार इसकी ज़रूरत ही नहीं है। यूपी में सपा के मुखिया अखिलेश यादव ने 18000 शपथ पत्र जमा कर केंचुआ से एक वर्ग और जाति के वोट काटे जाने की शिकायत की थी लेकिन आज तक केंचुआ उस पर चुप्पी साधे है। ऐसा लग रहा है कि राहुल गांधी पिछले कुछ दिनों से देश का एजेंडा तय कर रहे हैं। पहले संसद में उन्होंने मोदी सरकार को पहलगाम हमला पाकिस्तान से सीज़फायर और चीन द्वारा हमारी ज़मीन पर घुसपैठ के आरोपों पर घेरा जिस पर सरकार की काफी किरकिरी हुयी। इसके बाद राहुल ने सबूत के साथ भाजपा पर चुनाव आयोग के साथ मिलकर कई राज्यों और केंद्र का 2024 का चुनाव चुराने का आरोप लगाया जिससे सरकार भाजपा और केंचुआ आज तक बदहवास हैं लेकिन उनके पास इसकी कोई काट नहीं है। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने पलटकर कांग्रेस पर आधा दर्जन संसदीय सीटों पर फर्जी वोट से जीतने के हास्यास्पद और आत्माघाती आरोप लगाये जिससे राहुल के केंचुआ पर आरोपों की ही पुष्टि हुयी। राहुल गांधी जानते हैं कि सरकार चुनाव आयोग या कोर्ट उनके आरोपों की निष्पक्ष जांच नहीं करा सकते क्योंकि इससे न केवल कई राज्यों की भाजपा सरकारों बल्कि मोदी सरकार भी गिरने के कगार पर आ सकती है, साथ ही केंचुआ के आयुक्त से लेकर नीचे के कई अधिकारी कर्मचारी जेल जा सकते हैं। लेकिन इतना तो हुआ है कि जिस दिन से राहुल ने सप्रमाण भाजपा और केंचुआ पर चुनाव चुराने के गंभीर आरोप लगाये हैं, पूरी दुनिया में केंचुआ और मोदी सरकार की वैधता विश्वसनीयता और साख पर ज़बरदस्त बट्टा लगा है। 
        खुद भारतीयों की नज़र में इस सरकार की वैल्यू छवि और औकात कम हो गयी है। 17 अगस्त के दि हिंदू अख़बार में सीएसडीएस लोकनीति के सर्वे में बताया गया है कि 2019 में जहां एमपी राज्य में 57 प्रतिशत लोग चुनाव आयोग पर पूरा भरोसा करते थे वह घटकर अब मात्र 17 प्रतिशत रह गया है, यूपी में यह 56 से 21 प्रतिशत पर आ गया है। केरल में यह आंकड़ा 57 से 35 प्रतिशत रह गया है। जो लोग केंचुआ पर शून्य प्रतिशत विश्वास करते थे उनमें भी तेज़ी से बढ़ोत्तरी हुयी है। एमपी में यह 6 से बढ़कर 22 प्रतिशत हो गया है। यूपी में ऐसे लोग 11 से बढ़कर 31 प्रतिशत तक जा पहुंचे हैं। यह कितने दुख और लज्जा की बात है कि एक समय था जब देश में ऐसे सर्वे होते थे तो जनता का कहना होता था कि उनको सबसे अधिक भरोसा तो सेना पर है लेकिन दूसरे नंबर पर चुनाव आयोग को वे विश्वसनीय मानते थे। इतना ही नहीं दुनिया के दूसरे देश केंचुआ को अपने यहां स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने में सलाह सहयोग और कार्य करने को सादर आमंत्रित करते थे। सेंटर फाॅर दि स्टडी आॅफ डवलपिंग सोसायटी लोकनीति के सर्वे के आंकड़े यह भी बताते हैं कि जनता को 2024 के चुनाव में ही मोदी सरकार चले जाने का अनुमान था लेकिन जब विपक्ष के आरोप के अनुसार 79 सीटों पर गड़बड़ी करके भाजपा कम हार जीत के मार्जिन वाली अधिकांश सीट जीतकर तिगड़म से साझा सरकार बनाने में सफल हुयी तो एक साल में ही जनता का भरोसा मोदी सरकार से घटने लगा। वसीम बरेलवी ने क्या खूब कहा है- 
शराफ़तों की यहां कोई अहमियत ही नहीं,
किसी का कुछ ना बिगाड़ो तो कौन डरता है।
नोट-लेखक नवभारत टाइम्स डाॅटकाॅम के ब्लाॅगर और पब्लिक आॅब्ज़र्वर के चीफ़ एडिटर हैं।

Thursday, 7 August 2025

चुनाव आयोग और राहुल गांधी

चुनाव आयोग राहुल गांधी को सप्रमाण गलत साबित कर सकता है ?
0 एक तरफ चुनाव आयोग ने बिहार में मतदाता सूची का विशेष सघन पुनरीक्षण कर 65 लाख से अधिक लोगों को वोटर लिस्ट से बाहर कर दिया है। इसका आधार इन मतदाताओं का मर जाना, बिहार छोड़कर दूसरे स्थानों पर हमेशा के लिये चला जाना और उनका नाम दो दो जगह मतदाता सूची में होना बताया गया है। वहीं दूसरी तरफ राहुल गांधी ने ताज़ा आरोप लगाया है कि महाराष्ट्र हरियाणा में फर्जी वोटिंग हुयी है। 5 बजे के बाद वोटर टर्न आउट अचानक बढ़ गया। महाराष्ट्र में 40 लाख वोटर रहस्यमय हैं। हमें लगता है इस बड़े खुलासे का आयोग पर कोई खास असर नहीं होगा क्योंकि वह पूरी तरह से मनमानी बेशर्मी और तानाशाही पर कायम है। चुनाव आयोग को स्वस्थ लोकतंत्र पारदर्शी चुनाव और निष्पक्षता के लिये राहुल को सबूत के साथ गलत साबित करना होगा।    
              -इक़बाल हिंदुस्तानी
      राहुल गांधी विपक्ष के नेता हैं। वह बार बार चुनाव आयोग को सचेत कर रहे हैं कि वह निष्पक्ष काम करे नहीं तो सत्ता में आने पर जांच कराकर जो चुनाव अधिकारी और कर्मचारी दोषी पाये जायेंगे उनको रिटायर हो जाने के बावजूद तलाश कर कड़ी कानूनी सज़ा दी जायेगी। राहुल ने प्रैसवार्ता कर कहा कि चुनाव प्रक्रिया लंबी चलने से लोगों का शक बढ़ रहा है। महीनों चुनाव चलने के बाद दलों के आंतरिक सर्वे एग्जिट पोल और ओपिनियन पोल से बिल्कुल अलग चैंकाने वाले परिणाम कैसे आ जाते हैं? सत्ता विरोधी भावना यानी एंटी इनकम्बेसी से केवल बीजेपी कैसे बच जाती है? जबकि लोकतंत्र में हर दल इसका शिकार होता ही है। राहुल ने कहा कि डिजिटल वोटर लिस्ट आज तक नहीं देने से हमें यकीन हो चुका है कि महाराष्ट्र में चुनाव आयोग ने बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव चुराया है। राहुल ने वोट चोरी की मिसाल देते हुए कहा कि कर्नाटक की महादेवपुरा सीट पर 6.5 लाख में से एक लाख से अधिक वोट की चोरी हुयी है। राहुल ने कहा कि 11000 वोटर ने तीन तीन बार वोट दिये हैं। 40,000 वोटर्स की मकान संख्या शून्य है। 
         एक पते पर बड़ी तादाद में वोटर कैसे बन गये? एक ही वोटर कई राज्यों में वोट कैसे डाल रहा है? क्या चुनाव आयोग फर्जीवाड़ा नहीं कर रहा है? हमें ना देकर चुनाव के सीसीटीवी फुटेज आयोग ने डिलीट क्यों किये अगर कुछ गड़बड़ नहीं थी? राहुल गांधी का यह भी कहना है कि उनको राजस्थान छत्तीसगढ़ और एमपी में हुए विधानसभा चुनाव के बाद से ही आयोग की हरकतों को लेकर शक होने लगा था लेकिन हरियाणा महाराष्ट्र और दिल्ली के चुनाव के अप्रत्याशित चुनाव परिणाम देखकर उनका आयोग पर पक्षपात का संदेह पूरी तरह से विश्वास में बदल गया। इसकी पुष्टि के लिये उन्होंने अपने स्तर पर मतदाता सूची की जांच कराई जिससे उनको ऐसे तथ्य प्रमाण और दस्तावेज़ मिल गये हैं जिनसे यह पता लगता है कि चुनाव आयोग सत्ताधारी भाजपा के पक्ष में काम कर रहा है? राहुल ने चुनाव आयोग पर चुनाव में वोट चुराने और भाजपा को धोखे से जिताने तक का गंभीर आरोप लगाया है। उनका कहना है कि आयोग की नीयत में खोट इस बात से ही साबित हो जाता है कि उसने आज तक बार बार मांगने के बावजूद महाराष्ट्र के मतदाताओं की डिजिटल लिस्ट उनको उपलब्ध नहीं कराई है। इसकी वजह राहुल को यह लगती है कि इससे आयोग का यह गोरखधंधा खुल जायेगा कि जब पूरे महाराष्ट्र में कुल बालिग लोग ही 9 करोड़ 57 लाख हैं तो कुल मतदाता बढ़कर 9 करोड़ 70 लाख कैसे हो सकते हैं? 
        यह भी सच है कि किसी भी राज्य या देश में सौ फीसदी वयस्क लोगों के वोट बनना भी असंभव होता है। साथ ही यह सवाल भी शक को बढ़ाता है कि राज्य के चुनाव में शाम 5 बजे के बाद अचानक 70 लाख वोटर्स कहां से निकल आये जिन्होंने रात 11 बजे तक मतदान किया। विपक्ष का यह भी आरोप है कि आयोग ने नये मतदाता बनाने के नाम पर एक एक घर एक एक फ्लैट और एक एक अपार्टमेंट में 100 से 200 तक नये मतदाता बिना कड़ी जांच पड़ताल के कैसे संदिग्ध रूप से बना दिये? विपक्ष का कहना है कि अब बिहार उसके बाद बंगाल और फिर पूरे देश में स्पेशल इंटैन्सिव रिवीज़न के नाम पर चुनाव आयोग सत्ताधारी दल के इशारे पर मनमाने तरीके से विपक्ष के परंपरागत समर्थक मतदाता खासतौर पर दलित आदिवासी अल्पसंख्यक और गरीब कमज़ोर वर्ग के वोट एक सुनियोजित षड्यंत्र, अभियान और योजना के तहत काटने पर तुला है। विपक्ष का आरोप है कि जो विपक्ष के असली वोटर काटे जाते हैं उनके बदले भाजपा के उतने ही फर्जी मतदाता जोड़ दिये जाते हैं जिससे हर सीट पर 20 से 30 हज़ार वोट का अंतर आ जाता है। आयोग बार बार सुप्रीम कोर्ट के सलाह देने के बावजूद आधार राशन और वोटर कार्ड को उन 11 दस्तावेज़ की सूची में शामिल करने को तैयार नहीं है जो अधिकांश लोगों के पास उपलब्ध हैं। यहां तक कि आयोग पूरी बेशर्मी और ढीठता से उस मतदाता पहचान पत्र को भी वैध मानने से मना कर रहा है जो उसने खुद ही जारी किया है। 
        आयोग से पूछा जाना चाहिये कि क्या उसने फर्जी मतदाता पहचान पत्र बनाये हैं? रहा कुछ फर्जी राशन आधार और वोटर कार्ड का तो जो 11 डाक्यूमेंट की लिस्ट आयोग ने मतदाता जांच के लिये जारी की है, उनमें भी कुछ नकली और फर्जी हो ही सकते हैं जैसा कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुका है कि दुनिया का ऐसा कोई दस्तावेज़ नहीं है जिसको कुछ लोग फर्जी ना बना लेते हों लेकिन इसकी जांच कर व्यक्तिगत स्तर पर ऐसे लोगों की पहचान कर उनके कागजों को अमान्य किया जा सकता है लेकिन इस बहाने सबके आधार वोटर और राशन कार्ड को ठुकराना गलत है। सच तो यह है कि चुनाव आयोग की विश्वसनीयता सरकार ने उसी दिन खत्म कर दी थी जिस दिन चुनाव आयुक्त चुनने वाली कमैटी से चीफ जस्टिस को बाहर कर विपक्ष के नेता व पीएम के साथ उनके एक और मंत्री को शामिल करने का कानून बना था। यही वजह थी इस दौरान एक चुनाव आयुक्त गोयल ने इस्तीफा भी दे दिया था। रही सही कसर चुनाव आयोग ने अपने विवादित पक्षपातपूर्ण और अड़ियल रूख से पूरी कर विपक्ष को खुद पर बार बार उंगली उठाने का मौका देकर पूरी कर दी है। 
          चुनाव आयोग पर बार बार सरकार की कठपुतली बनने के विपक्ष आरोप लगाता आ रहा है लेकिन आयोग इस बारे में गंभीर नज़र नहीं आता कि उसको अपनी विश्वसनीयता साख और स्वायत्ता की कोई खास चिंता है। आयोग को चाहिये था कि वह सरकार से कहता कि वह गृह मंत्रालय से लोगों की नागरिकता की जांच कराये उसके बाद जो लोग पर्याप्त दस्तावेज़ पेश नहीं कर पायेंगे उनके सामने अपीलीय अधिकारी फोरेन ट्रियूब्नल या कोर्ट जाने का अधिकार रहता है। जब अंतिम रूप से यह तय हो जाये कि कोई व्यक्ति भारत का नागरिक नहीं है तो उसका नाम चुनाव आयोग की सूची ही क्या सरकार की ओर से मिलने वाली हर प्रकार की सुविधा से काटा जा सकता है। लेकिन चुनाव आयोग पता नहीं किसके एजेंडे पर चलने पर अड़ा है। शायर ने शायद चुनाव आयोग की बेहिसी पर कहा है- *उसके नज़दीक ग़म ए तर्क ए वफ़ा कुछ भी नहीं, मुतमइन ऐसा है वो जैसे हुआ कुछ भी नहीं।* 
नोट-लेखक नवभारत टाइम्स डाॅट काॅम के ब्लाॅगर और पब्लिक आॅब्ज़र्वर के चीफ़ एडिटर हैं।