"आरक्षण विरोधी अक्सर एक सवाल करते हैं कि हमारे पूर्वजों के कर्मों की सज़ा हमें क्यों मिल रही है ? आखिर हमारा क्या गुनाह है ? शोषण हमारे पूर्वजों ने किया फिर हमें आरक्षण के रूप में सज़ा क्यों मिल रही है.
इसका जवाब बिल्कुल आसान है.
आपके पूर्वजों ने जो शोषण किया उसका असर अभी तक मौजूद है. आपके पूर्वजों ने शूद्रों पर शिक्षा के लिए प्रतिबंध लगाए , उनके पेशे पर प्रतिबंध लगाए , उनके धार्मिक सामाजिक जीवन पर प्रतिबंध लगाए और उन्हें शैक्षिक , सांस्कृतिक और सामाजिक तौर पर हीन बनाये रखा. यह प्रतिबंध सिर्फ कुछ सालों या दशकों तक नहीं था. यह प्रतिबंध हज़ारों साल तक रहा. उत्तर वैदिक से लेकर उन्नीसवीं शताब्दी तक का अंतराल करीब तीन हज़ार साल का है. आपके पूर्वजों ने लगभग तीन हज़ार साल तक इस देश की बहुसंख्य आबादी का शोषण किया.
इसका परिणाम क्या हुआ ?
इसका परिणाम ये हुआ कि आज़ादी के बाद शूद्रों का शिक्षा , नौकरी और राजनीति जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में प्रतिनिधित्व नगण्य था. इन सभी क्षेत्रों में पूरी तरह से शोषक जातियों का कब्ज़ा था. उनके पास वो तमाम संसाधन और अवसर थे जो शूद्रों का शोषण कर हासिल किए गए थे. यह उनके हज़ारों साल के शोषण का ही असर है कि उक्त क्षेत्रों में शोषक जातियों का वर्चस्व आज भी कायम है.
ऐसा नहीं है कि भारत के आज़ाद होते ही या आरक्षण लागू होने की तिथि से ही हज़ारों साल में हुए नुकसान की भरपाई हो गयी या घोषणा के दिन से ही पूर्व में हुए शोषण का असर और उस समय हो रहा शोषण फौरन खत्म हो गया.
वहीं दूसरी तरफ आज़ादी के बाद शोषक जातियों का देश की संपत्ति , शिक्षा , संस्कृति , राजनीति , सामाजिक जीवन आदि सभी क्षेत्रों में वर्चस्व बरकरार था. उनके शोषण के चलते समाज अपने मूल में गैर समतामूलक , भेदभावपूर्ण और शोषक जातियों के अवैध वर्चस्व के अधीन था. वो पहले की तरह ही सामाजिक और सांस्कृतिक तौर पर श्रेष्ठ बने हुए थे.
अपने पूर्वजों के शोषण के ये लाभ उन्हें पहले की तरह आज भी मिल रहे हैं. ऐसा नहीं है कि आज़ादी या आरक्षण लागू होने के बाद एक झटके में सब खत्म हो गया. अपने शोषक पूर्वजों के चलते ही चाहे संपत्ति हो , शिक्षा हो , राजनीति हो , न्यायपालिका , मीडिया या सामाजिक पदानुक्रम हो , सब जगह यही श्रेष्ठ बने हुए हैं और सब जगह इन्हीं का वर्चस्व है.
ऐसे में जब शोषण का असर और इस शोषण के कारण शोषक जातियों को मिलने वाला लाभ आज भी बरकरार है तो ज़ाहिर है दोनों को समाप्त करने की प्रक्रिया भी अभी जारी रहना जरूरी है.
यह तब तक जारी रहेगी जब तक समाज पूरी तरह विविधतापूर्ण , न्यायसंगत और समतामूलक नहीं बन जाता है.
आरक्षण , प्रतिनिधित्व के माध्यम से समाज को इसी दिशा में आगे ले जा रहा है. यह शोषक जातियों के अवैध और अन्यायपूर्ण वर्चस्व को समाप्त कर वंचित वर्गों को शिक्षा , सरकारी नौकरियों और राजनीति में प्रतिनिधित्व दे रहा है जिससे भारत पहले से अधिक विविधतापूर्ण , न्यायसंगत और समतामूलक बन रहा है. यह देश के विकास में सभी वर्गों की भागीदारी सुनिश्चित कर रहा है.
यह किसी को सज़ा नहीं दे रहा है बल्कि उन्हें न्याय दे रहा है जिनके साथ अन्याय करने वाली शोषक जाति से होने के कारण आज आप उनसे बेहतर स्थिति में हैं. यह किसी एक की बेहतर स्थिति का निषेध कर शोषित जातियों को आपके समान ही बेहतर स्थिति में ला रहा है. यह समाज में व्याप्त असंतुलन और विशेषाधिकार को समाप्त कर समानता और संतुलन की स्थिति स्थापित कर रहा है. यह कुछ जातियों के वर्चस्व वाले देश की बजाय सबकी भागीदारी वाला राष्ट्र निर्मित कर रहा है.
किसी को आरक्षण सज़ा या अन्यायपूर्ण लगता है तो इसका मतलब साफ है कि वह वर्चस्ववादी और असमानता का पैरोकार है. वह इस देश के समस्त संसाधनों को अपनी जागीर समझता है. वह नहीं चाहता कि उसमें सबकी हिस्सेदारी हो. वह नहीं चाहता कि देश के विकास में सबकी भागीदारी सुनिश्चित हो. वह अपने जैसे जातिगत प्रिविलेज वाले लोगों से प्रतिस्पर्धा करने में डरता है. वह इस बात से हतोत्साहित रहता है कि वह अपनी जाति वालों से प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकता है. उसे देश के इतिहास , समाज और न्याय , समानता व डाइवर्सिटी जैसी अवधारणों की कोई समझ नहीं है.
कभी कोई ऐसा सवाल करने वाला मिले तो चुप मत रहिये. उसे डिटेल में और कायदे से समझाइये...."
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@ Pradyumna Yadav
via - प्रमोद कुमार