नायडू की ‘परिवार बढ़ाओ’ अपील पर अब भाजपा चुप क्यों है ?
0 आंध््रा प्रदेश के सीएम चन्द्रबाबू नायडू ने कहा है कि ‘‘राज्य के परिवारों को कम से कम दो या अधिक बच्चे पैदा करने का लक्ष्य रखना चाहिये। अतीत में मैंने जनसंख्या नियंत्रण की वकालत की थी, लेकिन अब हमें भविष्य के लिये जन्म दर बढ़ाने की ज़रूरत है। राज्य सरकार एक कानून बनाने की योजना बना रही है।’’ अगर यही बात कश्मीर के सीएम उमर अब्दुल्लाह ने कही होती तो संघ परिवार से लेकर मीडिया तक उनको आबादी बढ़ाओ जेहादी, देशविरोधी और हिंदुओं के खिलाफ साज़िश करने वाला बता रहा होता। खुद हमारे पीएम पिछले लोकसभा चुनाव में मुसलमानों को अधिक बच्चे पैदा करने वाला बताकर कांग्रेस पर हिंदुओं से सम्पत्ति छीनकर उनको देने का आरोप लगा चुके हैं।
*-इक़बाल हिंदुस्तानी*
आंध्रा के मुख्यमंत्री नायडू के परिवार नियोजन के खिलाफ बोलने के बाद तमिलनाडू के सीएम स्टालिन ने भी उनके सुर में सुर मिलाते हुए अपने प्रदेश के लोगों से कुछ ऐसी ही अपील कर दी है। हो सकता है कि आगे दक्षिण के अन्य राज्यों के मुखिया भी इस बयानबाज़ी में नायडू के साथ खड़े नज़र आयें। दरअसल यह सारा विवाद उत्तर बनाम दक्षिण या दक्षिण बनाम देश के बाकी राज्य होने वाला है। इसकी वजह यह है कि 2026 में लोकसभा क्षेत्रों का एक बार फिर नया परिसीमन होना है। चूंकि संसदीय सीटों का सीमांकन जनसंख्या के आधार पर होता है। उसी के आधार पर बाद में राज्यसभा और विधानसभा व विधान परिषद सीटों का चुनाव होता है। ऐसे में परिवार नियोजन में सक्रिय भागीदारी कर जिन दक्षिण के राज्यों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनको नये परिसीमन में सीटें कम होेने का डर सता रहा है। इसके उलट उत्तर के यूपी बिहार जैसे राज्यों की आबादी तेज़ी से बढ़ने के कारण एमपी की सीटें बढ़ने के पूरे आसार हैं। हालांकि परिवार नियोजन अपनाने से राज्यों के लोगों को बेहतर शिक्षा स्वास्थय और रोज़गार मिलने से अच्छा जीवन जीने का लाभ मिलता हैै, लेकिन राजनीतिक रूप से यह घाटे का सौदा लगता है। दक्षिण के राज्यों में यह सम्पन्नता समृध्दि और प्रगति साफ नज़र भी आती है।
दक्षिणी राज्य जब जब लोकसभा के परिसीमन की बात आई यह मांग करते रहे हैं कि उनकी संसद में भागीदारी कम ना हो इसके लिये सीटों के सीमांकन का आधार आबादी न रखकर क्षेत्रफल या राज्य के पहले से चले आ रहे प्रतिनिधित्व को बनाया जाये। इसके लिये वे देश के उन तीन लोकसभा क्षेत्रों का उदाहरण भी देते हैं जिनमें बहुत कम आबादी होने के बावजूद उनको एक संसदीय क्षेत्र माना गया है। मिसाल के तौर पर लक्षदीप संसदीय क्षेत्र के मतदाता केवल 64,473 लद्दाख के 2,74,000 और दादरा नागर हवेली एवं दमन दीव के 2,92,882 वोटर्स हैं। उधर इसके विपरीत तेलंगाना के मलकाजगिरी में 31,50,313 कर्नाटक के बंगलुरू उत्तर में 28,49,250 और यूपी के गाज़ियाबाद में 27,28,978 रिकाॅर्ड अधिकतम मतदाता भी हैं। कहने का मतलब यह है कि इतने कम और इतने अधिक मतदाता किन्हीं अपरिहार्य और तकीनीकी कारणों से भी हो सकते हैं। मामला केवल आबादी और संसदीय सीट घटने का नहीं है। दक्षिण के राज्यों को यह भी नाराज़गी है कि उत्तर के राज्य अर्थव्यवस्था में उतना योगदान नहीं दे रहे हैं जितना उनको बढ़ती आबादी के कारण कोटा दिया जा रहा है।
आंकड़े बताते हैं कि 2021 में बिहार की प्रति व्यक्ति आय जहां मात्र 49,407 रूपये थी वहीं यूपी में यह आंकड़ा मात्र 70,792 रू. था। इसके विपरीत तमिलनाडू में यही पर कैपिटा इनकम रिकाॅर्ड 2,41,131 तो कर्नाटक में 2,65,623 रूपये थी। नायडू की चिंता यह भी है कि उनके राज्य में प्रजनन दर रिकाॅर्ड स्तर पर गिरकर मात्र 1.5 रह गयी है। जबकि वर्तमान आबादी को स्थिर बनाये रखने के लिये टोटल फर्टिलिटी रेट 2.1 होना ज़रूरी है। उनको आशंका है कि अगर आबादी में गिरावट का यह सिलसिला जारी रहा तो उनके राज्य को भविष्य में चीन और जापान जैसी आबादी घटने के बाद पैदा होने वाली समस्याओं का सामना करना होगा जिसमें परिवार पर आश्रित बुज़र्गों की संख्या बढ़ती जाती है जबकि रोज़गार करने वाले युवा सदस्य लगातार कम होते जाते हैं। तमिलनाडू के सीएम इस मामले में नायडू से भी आगे निकलकर बयान दे रहे हैं कि ‘‘राज्य में बुजुर्ग विवाहित जोड़ों को 16 प्रकार की सम्पत्ति का आशीर्वाद देते हैं। इस आशीर्वाद का मतलब यह नहीं कि आपके 16 बच्चे होने चाहिये, पर अब ऐसी स्थिति पैदा हो गयी है, जहां लोग सोचते हैं कि उन्हें सचमुच 16 बच्चो का पालन पोषण करना होगा।’’
आपको याद होगा कि कुछ धार्मिक गुरू काफी समय से बढ़ती आबादी को ना रोककर और बढ़ाने की विवादित अपील करते हुए यही दलील देते आये हैं कि अगर ऐसा ना किया गया तो उनका समुदाय दूसरे समुदाय से संख्या में कम हो जायेगा। वे बच्चो को अल्लाह की देन भी बताते रहे हैं। उनका यह भी मानना है कि अल्लाह के मामले में इंसान को दख़ल नहीं देना चाहिये। इसके विपरीत प्रगतिशील और उदारवादी लोगों का एक समूह भी आबादी कम करने के विचार का विरोध करता रहा है। हालांकि इस समूह के अपने तर्क धार्मिक कट्टरपंथी और सांप्रदायिक लोगों से बिल्कुल अलग हैं। उनका दावा है कि आज हमारा देश सबसे युवा है। अगर हम अपने नौजवानों को चीन की तरह शत प्रति शत रोज़गार देने में सफल हो जायें तो हम दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकते हैं। ऐसे ही हमारे पीएम मोदी जी खुद इस बात पर बड़ा गर्व करते हंैं कि उनके राज में हमारी अर्थव्यवस्था विश्व में पांचवे स्थान पर आ गयी है। आगे वे इसको तीसरे स्थान पर लाने का सपना भी दिखाते हैं।
ज़ाहिर बात है कि अनेक कारणों में एक कारण अगर जनसंख्या बड़ी होगी और बढ़ती रहेगी तभी अर्थव्यवस्था बड़ी बनेगी। जहां तक नायडू और स्टालिन का आबादी बढ़ाने का ताज़ा आव्हान है तो उसके पीछे व्यक्ति नहीं उनके सियासी लाभ छिपे हैं। देखना यह है कि जो भाजपा जनसंख्या नियंत्रण का कानून लाने का बार बार दावा करती है वह अपने एनडीए सहयोगी नायडू को आबादी बढ़ाने के प्रोग्राम से कैसे रोकती है? अगर संघ परिवार वास्तव में बढ़ती आबादी को देश के विकास के लिये बाधा मानता है तो अब उसकी परीक्षा का समय आ गया है। भाजपा को चाहिये कि नायडू से कहे कि आबादी बढ़ाने की विवादित अपील तत्काल वापस लें माफी मांगे और ऐसा कोई कानून बनाने का इरादा छोड़ दें नहीं तो हम आपको एनडीए से निकालकर देशहित में अपनी सरकार तक गिरा सकते हैं, अगर ऐसा नहीं होता तो हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और माने जायेंगे।
0 शेख़ अपनी रग को क्या करेें, रेशे को क्या करें
मज़हब के झगड़े छोड़ें तो पेशे को क्या करें।
नोट- लेखक नवभारत टाइम्स डाॅटकाम के ब्लाॅगर और पब्लिक आॅब्ज़र्वर के चीफ एडिटर हैं।