*50 परसेंट वोटर्स पर क्यों हैं मौन,*
*गिरिराज को वेतन देता है कौन?*
0 केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने उन सब लोगों को नमकहराम कहा है जो केंद्र सरकार की योजनाओं का लाभ तो लेते हैं लेकिन बीजेपी को वोट नहीं देते। भले ही उनका इशारा मुसलमानों की तरफ़ हो लेकिन सही बात यह है कि उन्होंने आधे से अधिक उन हिंदुओं को भी लपेट लिया है जो भाजपा को वोट नहीं देते। बीजेपी को लगभग 36 परसेंट वोट मिलते हैं। मुसलमान देश में 14 परसेंट हैं। तो जो 64 परसेंट वोटर्स बीजेपी को वोट नहीं देते उनमें 50 परसेंट गैर मुस्लिम हैं। दूसरी बात यह है कि गिरिराज सिंह को जो वेतन भत्ते और सांसद निधि मिलती है उसमें मुसलमानों के टैक्स का पैसा भी शामिल है। तीसरी बात यह है कि संविधान मंत्री को इस नफ़रत भेदभाव और पक्षपात की इजाज़त नहीं देता है।
*-इकबाल हिन्दुस्तानी*
बिहार के अरवल में एक रैली के दौरान केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने एक मौलवी के साथ अपने वार्तालाप को सुनाते हुए कहा है कि ‘‘हमने कहा आयुष्मान कार्ड मिला? उसने कहा हां मिला। हमने कहा हिंदू मुसलमान हुआ? उसने कहा नहीं। हमने कहा बहुत अच्छा आपने हमको वोट किया था? उसने कहा हां दिया था। मैंने कहा खुदा की नाम लेकर बोलिये? तो उसने कहा नहीं दिया था। हमने कहा नरेंद्र मोदी ने गाली दिया था, हमने गाली दिया था? कहा नहीं। मैंने कहा मेरी गल्ती क्या थी? जो किसी का उपकार ना माने उसे क्या कहते हैं? नमकहराम कहते हैं। हमने कहा मौलवी साहब हमें नमकहराम का वोट नहीं चाहिये।’’ इस बातचीत को पूरी तरह सच नहीं माना जा सकता क्योंकि गिरिराज अकसर झूठ बोलते हैं। दूसरी बात यह है कि चुनाव आयोग के आंकड़े बताते हैं कि बीजेपी को मुसलमानों के 8 प्रतिशत वोट मिलते हैं। गरीब मुसलमान 11 परसेंट तक बीजेपी को वोट देता है। जबकि अमीर 6 और मीडियम क्लास मुसलमान 5 प्रतिशत वोट भाजपा को देता है।
उधर हिंदू 85 प्रतिशत होकर भी केवल 28 प्रतिशत ही भाजपा को वोट देता है। केंदीय योजनाओं का लाभ तो हिंदू मुसलमान सभी ले रहे हैं। लेकिन यहां नोट करने वाली बात यह है कि जिस तरह से बीजेपी ने मुसलमानों का हर स्तर पर विरोध दमन अन्याय अत्याचार पक्षपात भेदभाव और उनसे दुश्मनी की हद तक नफ़रत का माहौल बनाकर हिंदू वोट बैंक की राजनीति की है, इसके बावजूद उसको उनके 8 परसेंट वोट मिलना भी हैरत और डर की बात है। अगर आज देश में कानून संविधान और समानता का राज होता तो गिरिराज सिंह जैसे लोग मंत्रिमंडल नहीं जेल में होते। उनकी सांसदी छिन चुकी होती। चुनाव आयोग जीवित होता तो उनके ज़हरीले चुनाव प्रचार पर रोक लगा चुका होता। सुप्रीम कोर्ट न्याय करता तो स्वयं सू मोटो लेकर उनको दो धर्म के लोगों के बीच दरार पैदा करने के लिये तलब कर सज़ा दे चुका होता। मीडिया ज़िंदा होता तो उनसे उनके ज़हरीले आपत्तिजनक और विवादित बयानों पर तीखे सवाल पूछ रहा होता।
खुद मोदी अगर सबका साथ सबका विश्वास में विश्वास रखते तो उनको ना केवल मंत्री पद से बर्खास्त करते बल्कि भविष्य में चुनाव लड़ने को बीजेपी का टिकट भी नहीं देते। साथ ही सब भारतीयों का डीएनए एक बताने वाला संघ उनको अब तक कभी का आडवाणी बना चुका होता। लेकिन खेद है ऐसा कुछ नहीं हुआ क्योंकि यह सब एक सुनियोजित योजना बीजेपी का एजेंडा और उसके नफ़रत झूठ व बांटो और राज करो की घटिया नीति का सोचा समझा हिस्सा है। लेकिन बीजेपी को यह नहीं भूलना चाहिये कि बढ़ते करप्शन अपराध बेरोज़गारी महंगाई गरीबी भुखमरी अराजकता साम्प्रदायिकता घृणा झूठ जातिवाद हिंसा माॅब लिंचिंग बलात्कार पक्षपात भेदभाव वोट चोरी अन्याय अत्याचार शोषण घोटालों आॅनलाइन स्कैम आवारा पूंजीवाद रिश्वतखोरी कमीशनखोरी का अनुपात के हिसाब से नुकसान उनको ही अधिक संख्या में हो रहा है जिनका जनसंख्या में हिस्सा अधिक है। केवल मुसलमानों को हर समस्या के लिये टारगेट करके अपने कुकर्मों का ठीकरा बार बार उन पर फोड़कर हिंदुओं को अब आगे लंबे समय तक धोखा नहीं दिया जा सकता। अगर बीजेपी इतनी ही लोकप्रिय होती तो उसको राहुल गांधी के वोट चोरी के आरोपों का सामना नहीं करना पड़ता वह निष्पक्ष जांच कराकर विपक्ष को विश्वास में ले सकती थी।
अगर चुनाव आयोग निष्पक्ष निडर और कानून के अनुसार काम कर रहा होता तो किसी पार्टी किसी नेता और किसी बड़े से बड़े पद पर बैठे लीडर को हिंदू मुस्लिम जाति व धर्म के आधार पर वोट मांगने से रोकता लेकिन यहां तो चुनाव आयोग क्या मीडिया से लेकर ईडी सीबीआई व इनकम टैक्स विभाग जैसी लगभग सभी संस्थायें एक दल और उसके सहयोगियों को छोड़कर विपक्ष सरकार विरोधियों और निष्पक्ष सभी भारतीयों को लगातार निशाना बना रहा है और अफसोस की बात यह है कि कोर्ट भी इस पक्षपात अन्याय और उत्पीड़न को रोकने में अकसर नाकाम नज़र आता है। मुसलमानों की आबादी देश में 14 प्रतिशत से अधिक है लेकिन वे सरकारी नौकरी से लेकर निजी क्षेत्र की सेवा उद्योगों बैंक सेवा बैंक लोन सरकारी पेट्रोल पंप गैस एजेंसी राशन डीलर सरकारी ठेकों आईआईटी आईआईएम लोकसभा विधानसभा नगर निगम नगरपालिका सरकारी अस्पतालों की सेवा विभिन्न आयोगों सरकारी स्कूलों काॅलेजों यूनिवर्सिटी कोर्ट जजों पुलिस सेना प्रशासनिक अधिकारियों यानी कहीं भी 14 का आघा 7 तो दूर 3.5 प्रतिशत तक नहीं हैं। ऐसे में उनको उनके हिस्से अधिकार और अनुपात से अधिक क्या मिल रहा है?
भाजपा अकसर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगाती है। लेकिन उसको कोई गंभीरता से नहीं लेता। अगर वह बढ़ती आबादी को लेकर वास्तव में चिंतित होते तो सबके लिये अनिवार्य परिवार नियोजन यानी दो बच्चो का कानून बनाने की दस साल में हिम्मत दिखाते लेकिन वे जानते हैं इससे तो उनका हिंदू वोटबैंक भी नाराज़ हो जायेगा इसलिये उनको तो बस घृणा झूठ और हिंदुत्व की राजनीति करनी है। दूसरा तथ्य इस सारी बहस में यह भुला दिया गया है कि आबादी ज्यादा बढ़ना या तेजी से बढ़ना किसी सोची समझी योजना या धर्म विशेष की वजह से नहीं है बल्कि तथ्य और सर्वे बताते हैं कि इसका सीधा संबंध शिक्षा और सम्रध्दि से है। अगर आप दलितों या गरीब हिंदुओं की आबादी की बढ़त के आंकड़े अलग से देखें तो आपको साफ साफ पता चलेगा कि उनकी बढ़त दर कहीं मुस्लिमों के बराबर तो कहीं उनसे भी अधिक है। कहने का अभिप्राय यह है कि जिस तरह केरल सबसे शिक्षित राज्य है और वहां आबादी की बढ़त 2.01 प्रतिशत यानी लगभग जीरो ग्रोथ आ गयी है जिसमें मुस्लिम भी बराबर शरीक है, ऐसे ही देश में सबसे कम आबादी की बढ़त वाले राज्यों में मुस्लिम बहुल कश्मीर सबसे आगे हैं। देश में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी की बढ़त असम में 30.9 से बढ़कर 34.2 प्रतिशत पाई गयी है जिसका साफ मतलब है कि बंग्लादेशी घुसपैठ से भी यह उछाल आया है लेकिन सीमा पर घुसपैठ रोकने की ज़िम्मेदारी भी केंद्र सरकार की है।
*0चाकू की पसलियों से सिफ़ारिश तो देखिये,*
*वह चाहता है काटने में उसको मदद करें।।*
*0 लेखक नवभारत टाइम्स के ब्लाॅगर और पब्लिक आॅब्ज़र्वर अख़बार के संपादक हैं।*